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श्री वीर-संघ और अन्य राजा। [११९ ये। कितने ही उपलब्ध सिक्कों से, जो भगवानके समयसे लेकर मान्ध्र कालतकके हैं, भगवान महावीरजीके धर्मका सम्बन्ध प्रगट होता है। अतः इन सब बातों को देखते हुये, यह अन्दान सहन ही लगाया जाता है कि भगवान के निर्वाण उपरान्त उनका आदर जनतामें विशेष था।
इस प्रकार ज्ञ तृवंश क्षत्रियों का परिचय है । भारतीय इतिउपरान्तके झोत अथवा हासमें इनका महत्व किम विशिष्टको लिये
नाथ क्षत्री। हुये है, यह बताना वृथा है । किन्तु भगवान महावीरजीके उपरान्त इस वंशका और कुछ विशेष परि. चय हमें नहीं मिलता है । हां, अब भी पूर्वीय भारतकी ओर एक नायवंशका उल्लेख मिलता है। किंतु मालूम नहीं कि उनका संबंध किस वंशसे है।
श्री करि-संघ और अन्य राजा।
(ई० पू० ५७४-५२०) निप्त समय इस कल्पकालके आरम्भमें भोगमूमिका अन्त जैनधर्ममें “ संघ " होगया और लोगोंको जीवनके कर्तव्यपथ संस्थाकी प्राचीनता। पर मारूद होना पड़ा अर्थात् कर्मभूमिका प्रादुर्भाव हुमा, तो भगवान ऋषमदेवने तत्कालीन प्रनाको मध्यताकी पायमिक शिक्षा दी थी। उसी समय गृहत्याग करके दिगम्बर मेष घोर तपश्चरण करने के उपरान्त ऋषमदेवको केवलज्ञानकी विमृति प्राप्त ईथी। और नेपामस्त कार्यक्रम मेन
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