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१०८] संक्षिप्त जैन इतिहास। वह सफल हुये थे । त्रिलोक वंदनीय परमात्मा कहकर आज जगत उनको नमस्कार करता है ।
इसप्रकार भगवान महावीरने मोक्षमार्गको निर्दिष्ट करते हुये मनुष्योंकी स्वाधीनताका पाठ पढ़ाया था। उन्होंने बतला दिया कि अपने आप पर विश्वास करो। और सच्ची श्रद्धाके साथ अपने आपका और अपने चहुंओरके पदार्थो का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करो । निस समय मनुष्यको सच्चे ज्ञानका भान हो जायगा, वह कभी भी असदप्रवृत्ति में लीन नहीं होगा। भोगविलास उसे नीरस जैचेंगे और त्यागके कार्य बड़े मीठे और सुहावने । बस उसका चारित्र यथार्थ और निर्मल होगा। भगवान यह अच्छी तरह जानते थे कि मनुष्यमात्रके लिये यह संभव नहीं है कि वह उनके समान ही एकदम रसीली रमणी और राजसी भोगसामग्रीको पैरोंसे ठुकरा कर नीरसयोग और महान त्यागके बीहड़ मगका पथचर बन जावे। और वह यह भी समझते थे कि गृहस्थजीवनमें निरे योगकी शिक्षासे भी काम नहीं चल सक्ता है । इसीलिये भगवानने दो प्रकारके धर्म मार्गका निरूपण किया था। पहला मार्ग तो उन निस्टही साधु
ओंके लिये बतलाया था, जो उसी भवसे मोक्षसुख पानेके लालसी हों और दूसरा उसीका अपर्याप्तरूप गृहस्थों के लिये निर्दिष्ट किया था। दोनों मार्गवालोंके लिये अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और मपरिग्रह व्रतोंका पालना मावश्यक बतलाया था। साधुलोग इन व्रतोंको पूर्णरूपसे पालते हैं; किन्तु एक गृहस्थ इनको एक देश अर्थात् मांशिकरूपमें व्यवहारमें लाता है।
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