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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [६३ देखकर उनका शिष्य होनेको तत्पर था। किन्तु इस समय भावानने उसको अपना शिष्य नहीं बनाया। नालन्दासे भगवान् कोल्लाग पहुंच गये, जहां ब्राह्मण बाहुलने उनको माहार दिया था। गोशाल भगवानको ढूंढ़ता हुआ बहां ठीक उसी समय पहुंचा जब बहुतसे लोग बाहुनके उक्त आहारदानकी प्रशंप्ता कर रहे थे। यहांपर गोशालकी प्रार्थनाको महावीरनीने स्वीकार कर लिया लिखा है : अर्थात उन्होंने गोशालको अपना शिष्य बना लिया। फिर गोशाल और महावीरजी दोनों नने साथ साथ छै वर्ष तक पणियमूमिमें रहे । 'भगवतीसूत्र' का यह कथन श्वेताम्बरोंके दूसरे ग्रन्थ 'कमसुत्र' ( १२२ ) से ठीक नहीं बैठना । वहां भगवानको पणियभूमिमें केवल एक वर्ष ही व्यतीत किया लिखा है। इसके अतिरिक्त यह भी ठीक नहीं है कि भगवान जब स्वयं छद्मथ थे तब उन्होंने गोशालको अपना शिष्य बनाया हो । उनके भाचाराङ्गमूत्र में स्पष्ट लिखा है कि भगवान छद्मथ दशामें बोलते नहीं थे-मौनका अभ्यास करते थे। अतएव 'भगवती' का उपरोक्त कथन स्वयं उनके ही ग्रंथसे बाधित है एवं अन्य विद्वान भी अन्य प्रकार इमी निरूपंपर पहुंचे हैं कि मक्खलिगोशाल भगवान महावीरका शिष्य नहीं था।'
उपरान्त 'भगवतीमत्र' में बतलाया है कि भगवान महावीर गोशाल नब सिद्धस्थगामसे कुम्भगामको जारहे थे, तो मार्गमे एक फल फूली लता विशेषको देखकर गोशालने जिज्ञासा की कि 'लताश नाश होगा या नहीं और फिर उसके बोन कहां प्रकट
१-आमू. Ja. I P. 50-5.. २-माजी पृ० ११८, हिग्ली. पृ. २६ व Js. II Intro.
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