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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर ।
[ ६७ वास्तव में बात यह है कि मक्खलि गोशालका नामोल्लेख 'मक्खलि गोशाल' के अतिरिक्त ' मंखलिपुत्र गोशाल' और 'मस्करि' रूपमें भी हुआ मिलता है । देवसेनाचार्यने नस्करि रूपमें उन्हीं का उल्लेख किया है । उन्होंने मस्करिकी शिक्षायें बतलाई हैं उनका सामंजस्य मक्खल गोशाळकी शिक्षाओंसे बैठ जाना, इस बातकी पर्याप्त साक्षी है कि उनका भाव मक्खलि गोशालसे ही है । पूरणसे देवसेनाचाका अभिप्राय उस समयके एक अन्य प्रख्यात् साधुसे है । बौद्ध लोग - (१) पुरण कलप, (२) मक्खलि गोशाल, (३) अजित केसकम्बली, (४) पकुढकच्चायन, (५) संजय वैरत्थी पुत्र और (६) निगन्ठ नाथ पुत्तकी गणना उस समयकी प्रख्यात ऋषियों में करते हैं' | निगन्ठ नाथपुत्त अर्थात् भगवान् महावीर के अतिरिक्त अवशेपकी म० बुद्धने तीव्र आलोचना भी की है ।
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यह सब ही ऋषिगण भगवान् महावीरसे वयमें अविक और उनसे पहले के थे । निप पूरणका उल्लेख देवसेनाचार्यने किया है, वह पूग्ण कपप ही प्रतीत होता है । इसका सम्बंध गोशाळसे विशेष था, इस कारण इन दोनों का उल्लेख साथ साथ किया जाना सुमंगत है । बौद्धोंके 'अंगुत्तर निकाय' में पुरणको गोशालका शिष्य 1 प्रगट करने जैसा उल्लेख है तथा गोशाळके छै अभिजाति सिद्धांत को पुरणका बतलाया गया है। यहां गलती होना अशक्य है; बल्कि इस सिद्धांत मिश्रणसे उनका पारस्परिक घनिष्ट सम्बंध ही प्रगट होता है; जिसे डॉ० ज के चारपेन्टियर सा० भी स्वीकार करते है ।
१- दोनि० मा० २ पृ० १५० । २- हिग्ली ० १० २७-२८ । ३- दिग्ली • पृ० २५-२६ । ४-अंगु० भा० ३ पृ० ३८३ । ५३० भा० ४३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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