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७८] संक्षिप्त जैन इतिहास।
भगवान महावीरने जिस अपूर्व त्यागवृत्ति और अमोघ आत्म. भगवान महावीर शक्तिका अवलंबन किया था, उसीका फल था सर्वज्ञ थे। अजैन कि वह एक सामान्य मनुष्यसे मात्मोन्नति ग्रंथोंकी साक्षी। करते२ परमात्मपद जैसे परमोत्कृष्ट अवस्थाको प्राप्त हुये थे । वह सर्वज्ञ हो गये थे। जैन शास्त्र कहते हैं कि ज्ञात्रिक महावीर भी अनंतज्ञान और अनंतदर्शनके घारी थे। प्रत्येक पदार्थको उनने प्रत्यक्ष देख लिया था और वे सर्व प्रकारके पापमलसे निर्मूल थे । वह समस्त विश्वमें सर्वोच्च और महाविद्वान थे। उन्हें सर्वोत्कृष्ट, प्रभावशाली, दर्शन, ज्ञान और चारित्रसे परिपूर्ण और निर्वाण सिद्धान्त प्रचारकों में सर्वश्रेष्ठ बतलाया गया है।' यह मान्यता केवल जैनोंकी ही नहीं है । ब्राह्मण और बौद्ध ग्रन्थ भी भगवान महावीरजीकी सर्वज्ञताको स्वीकार करते हैं। बौद्धोंके अंगुत्तरनिकायमें लिखा है कि भगवान महावीरजी सर्वज्ञाता और सर्वदर्शी थे। उनकी सर्वज्ञता अनंत थी। वह हमारे चलते, बैठते, सोते, जागते हर समय सर्वज्ञ थे। वह जानते थे कि किसने किस प्रकारका पाप किया है और किसने नहीं किया है। बौद्ध शास्त्र कहते हैं कि महावीर संघके आचार्य, दर्शन शास्त्र के प्रणेता, बहुप्रख्यात, तत्ववेत्ता रूपमें प्रसिद्ध, जनता द्वारा सम्मानित, अनुभवशील वय प्राप्त माधु और आयुमें अधिक थे। ( डायोलॉग्स
१-उपु• पृ० ६१४ । २-Js. II, pp. 287-270. ३-मझिमनिकाय १।२३८ व ९२-९३, अंगुत्तरनिकाय ३१७४, न्यायविन्दु अ० ३, चुल्वग्ग SBE. XX 78, Ind, Anti. VIII. 313. पंचतंत्र (Keilhorn, V I.) इत्यादि । ४-अं. नि. भाग १ १०
२२० । ५-ममि० भाग २ पृ. २१४-२२८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com