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९६] संक्षिप्त जैन इतिहास ।
बनारससे अन्यत्र विहार करते हुए वे कलिंगदेशमें पहुंचे वीर समोशरण कलिङथे। वहांपर राजा सिद्धार्थके बहनोई जित
व बङ्ग आदिमें। शत्रुने भगवानका खूब स्वागत किया था और अन्तमें वह दिगम्बर मुनि हो मोक्ष गये थे। उस ओरके पुण्डू , बंग, तम्रलिप्त आदि देशोंमें विहार करते हुए भगवान कौशांबी पहुंचे थे। कौशांबीके नृप शतानीकने भगवानके उपदेशको विशेष भाव और ध्यानसे सुना था, भगवानकी वंदना उपासना बड़ी विनयसे की थी और अन्त दह भगवान के संघ संमिलित होगया था । उनका पुत्र उदयन् वत्सराज राज्याधिकारी हुआ था।
इस प्रकार राजगृह, कौशांबी मादिकी ओर धर्मचक्रकी प्रगति पर आदिमें विशेष रूपसे हुई थी । बौद्ध शास्त्र कहते हैं कि
धर्म प्रचार। उस समय भगवान महावीर मगघ व अंग आदि देशोंमें खूब ही तत्त्वज्ञानकी उन्नति कर रहे थे।
एकदा विहार करते हुए भगवानका समोशरण पाञ्चालदेशकी पाञ्चालमें भगवानका राजधानी और पूर्व तीर्थंकर श्री विमलना
प्रचार । थनीके चार कल्याणकोंके पवित्र स्थान कांपिल्यमें पहुंचा था और वहां फिर एकवार धर्मकी अमोघवर्षा होने लगी थी। उप्त समय कुन्दकोलिय नामक एक शास्त्रज्ञ और धर्मात्मा श्रावक यहांपर था । यहीं पड़ोसमें संकाश्य ( संकसा ) ग्राम भी विशेष प्रख्यात् था। भगवान विमलनाथजीका केवलज्ञान स्थान संभवतः वही 'मघहतिया' (अघहतग्राम ) में था। वहांपर भाज
१-हरि० पू० १८ । २-हरि० प्र० ६२३ । ३-वीर वर्ष ३ १० ३७०। ४-मम०, पृ० १०८ व उप्र० पृ. ६३४ । ५-मनि. भा० १ पृ. २ -उद० व्या० ६ ।
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