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संक्षिप्त जैन इतिहास । जैनधर्मके प्रेमी यह राजा भगवानका विशेष स्वागत करनेमे पीछे रहे हों। उससमय मेवाड़ प्रांतमें स्थित मन्झिमिका नगरी भी बहु प्रख्यात् थी। वीर निर्वाण संवत ८४ के एक शिलालेखमें इस नगरीका उल्लेख है; उससे प्रगट होता है कि भगवान महावीरजीका मादर इस नगरके निवासियोंमें खूब था। सारांशतः जैनधर्मकी गति इस प्रांत में अत्यन्त प्राचीनकालसे है । उनैन तो नेनों का मुख्य ही केन्द्र था।
राजपूतानेकी तरह गुजरातमें भी जैनधर्मका अस्तित्व प्राचीन गुजरात और सिधदे- कालसे है। भगवान महावीरजीका समोशमें वीर प्रभूका शरण दक्षिण प्रांतकी ओर होता हुमा यहां
पवित्र विहार । भी अवश्य पहुंचा था; इस व्याख्याको पुष्ट करनेवाले उल्लेख मिलते हैं । बावीसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथनीका निर्वाणस्थान इसी प्रांतमें है । गिरिनगर (जूनागढ़) के राजा जैन थे, यह जैन शास्त्रोंसे प्रगट है। कच्छदेश और सिन्धुसौवीरके राजा उदायन जैनधर्मके परमभक्त थे; यह पहले लिखा जा चुका है। उनकी राजधानी रोरुकनगरमें भगवानका समोशरण पहुंचा था। रोरुक उस समय एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था । लाटदेशमें उससमय जैनधर्मका खूब प्रचार था । भृगुकच्छमें राजा वसुपाल थे। यहां
१-राइ० भा० १ पृ० ३५८-स्वयं मध्यमिकासे प्राप्त वि० सं० पूर्वकी तीसरी शताब्दिके आसपासकी लिपिमें अंकित लेखों से एकमें पढ़ा गया है कि "सर्व भूतों (जीवों)की दयाके निमित्त......बनवाया ।" यह उल्लेख स्पटतः जैनोंसे सम्बन्ध रखता है, बौद्धोंसे नहीं । क्योंकि बौखोने सब भूतों (पृथ्वी जलादि)में जीव नहीं माना है। देखो केहिह.
पृ० १६१ । २-हरि० पृ० ४९६ । ३-कैहिइ० पृ. २१२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com