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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर ।
[ १०३ होता है' | श्रवणबेलगोला के मान्य पंडिताचार्य श्री चारुकीर्तिनी महाराज एवं स्व० पं० गोपालदासनी बरैया प्रभृति विद्वान् भी इस ही मतका पोषण कर चुके हैं । उक्त पंडिताचार्य महाराजका तो कहना था कि दक्षिण भारतमें करीब एक वा डेढ़ हजार वर्ष पहिले बहुत से जैनी अरबदेश से आकर बसे थे । अब यदि वहांपर जैन धर्मका प्रचार न हुआ होता तो वहांपर जैनियों का एक बड़ी संख्या में होना असंभव था । श्री जिनसेनाचर्यजी महाराजने जिन देशों में भगवानका विहार हुआ लिखा है, उनमें से यवनश्रुति, क्वाथतोर्ये, सुरभी, तार्ण, काण आदि देश अवश्य ही भारत के बाहर स्थित प्रतीत होते हैं। इसके अतिरिक्त प्राचीन ग्रीक यूनानी) विद्वान् भगवान महावीरजीके समय के लगभग जैन मुनियोंका अस्तित्व वैक्ट्रिया और अवीसिनियामें बतलाते हैं । विलफर्ड सा०ने 'शंकर प्रादुर्भव'
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१- भवा०, पृ० १५६ । २- ऐरि०, भा० ९० २८३ । 3- ववन श्रुति पारस्य अथवा यूनानका बोधक प्रतीत होता है । ४- क्वाथतोष अर्थात् उम्र समुद्र तटका देश जिसका जल क्वाथके समान था । अतः इस प्रदेशका 'रेडी' ( Red Sea ) के निकट होना उचित हैं । उस समुद्र के किनारे वाले देशों जैसे अवीसिनिया, अरब आदिमें जैन धर्मका अस्तित्व मिलता है। देखो लाम० १० १८-१९ व भा० पृ० १७३-२०२ । ५-सुग्भीरु देश संभवतः 'सुरभि' नामक देशका बोधक है, वो मध्य ऐशिया में क्षीरमागर ( Caspian Sea ) के निकट अक्षम ( Oxus ) नदीसे उत्तरकी ओर स्थित था । यह आज कलके तीव (Khiva ) प्रान्तका खनन अथवा स्वरिम प्रदेश है । देखो इहिक्का ० मा० २ १० २९ । ६-एइमे० पृ० १०४ "Sarmanaeanswere the philosopers of the Baktrians." व मंयो० १० १०३ ( श्रमण जैन मुनिको कहते है )
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