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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । ९१. इस बात की घोषणाकी कि जगत का प्रत्येक प्राणी जो अशांति, अज्ञान और अत्यन्त दुःखकी मालामें जल रहा है, मेरे उपदेशसे लाभ उठा सक्ता है । अज्ञानके चक्र में छटपटाता हुमा प्रत्येक नीव चाहे वह तियच हो चाहे मनुष्य, आर्य हो चाहे म्लेच्छ, ब्राह्मण हो या शूद, पुरुष हो या स्त्री, मेरे धर्मके उदार झण्डे के नीचे आ सक्ता है । सत्य का प्रत्येक इच्छुक मेरे पाप्त माकर अपनी आत्मपिपसाको बुझा सक्ता है। इस घोषणाके प्रचारित होते ही हनारों सत्यके मुखे प्राणी महावीरकी शरणमें आने लगे।
महावीरजीकी महान् उदार आत्माके निकट सबको स्थान मिल गया। कवि सम्राट् सर रविन्द्रनाथ टागोर कहते हैं कि 'महावीरस्वामीने गंभीरनादसे मोक्षमार्गका ऐसा संदेश भारतवर्ष में फैलाया कि धर्म मात्र सामाजिक रूढ़ियों में नहीं है, किन्तु वह वास्तविक सत्य है। संप्रदाय विशेषके बाहिरी क्रियाकाण्डका अभ्यास करनेसे मोक्ष प्राप्त नहीं होसक्ती; किन्तु वह सत्य धर्मके स्वरूपमें आश्रय लेनेसे प्राप्त होती है । धर्ममें मनुष्य और मनुष्यका भेद स्थाई नहीं रह सक्ता । कहते हुये आश्चर्य होता है कि महावीरनीकी इस शिक्षाने समाजके हृदयमें बैठी हुई भेदभावनाको शीघ्र नष्ट कर दिया और सारे देशको अपने वश कर लिया !"२ ।।
इसप्रकार भगवानका ४३ वर्षसे ७२ वर्ष तकका दीर्घ जीवन देवल लोक कल्याणके हितार्थ व्यतीत हुमा था। इस उपदेशका परिणाम यह निकला था कि (१) जाति-पांतिका जरा भी भेद रक्खे बिना मनता हरएक मनुष्यको-चाहे वह शूद्र अथवा घोर
१-चमम• पृ. १७३ । २-भम• पृ० २७१ ।
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