________________
संक्षिप्त जैन इतिहास । प्रारम्भ कर दिया था। उनका उपदेश हितमित पूर्ण शब्दोंमें समस्त जगतके जीवोंके लिये कल्याणकारी था । उस आदर्श रूप उपदेशको सुनकर किसीका हृदय जरा भी मलिन या दुखित नहीं होता था। बल्कि उसका प्रभाव यह होता था कि प्रकृत जाति विरोधी जीव भी अपने पारस्परिक वैरभावको छोड़ देते थे। सिंह और भेड़, कुत्ता और बिल्ली बड़े आनंदसे एक दूसरेके समीप बैठे हुये भगवानके दिव्य संदेशको ग्रहण करते थे। पशुओंपर भगवानका ऐसा प्रभाव पड़ा हो, इस बातको चुपचाप ग्रहण कर लेना इस जमाने में जरा कठिन कार्य है। किंतु जो पशु विज्ञानसे परिचित हैं और पशुओंके मनोबल एवं शिक्षाओंको ग्रहण करनेकी सुक्ष्म शक्तिकी ओर जिनका ध्यान गया है, वह उक्त प्रकार भगवान महावीरके उपदेशका प्रभाव उन पर पड़ा मानने में कुछ अचरज नहीं करेंगे।
सचमुच वीतराग सर्व हितैषी अथवा सत्य एवं प्रेमकी साक्षात जीती जागती प्रतिमाके निकट विश्वप्रेमका आश्चर्यकारी किंतु अपूर्व वातावरण उपस्थित होना, कुछ भी अप्राकृत दृष्टि नहीं पड़ता ! विश्वका उत्कृष्ट कल्याण करनेके निमित्त ही भगवानके तीर्थङ्कर पदका निर्माण हुआ था ! 'लेकिन उन्होंने अपना निर्माण सिद्ध करनेके निमित्त कभी किसी प्रकारका मनुचित प्रभाव डालनेकी कोशिश नहीं की और न कभी उन्होंने किसीको भाचार विचार छोड़कर अपने दलमें आने के लिए प्रलोभित ही किया। उनकी उपदेश पद्धति शांत, रुचिकर, दुश्मनोंके दिलों में भी अपना असर
पैदा करनेवाली, मर्मस्पर्शी और सरल थी।' 'सबसे पहिले उन्होंने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com