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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [ ९३
[ प्रथम उनका शुभागमन मगधमें राजगृहके निकट विपुलाचल पर्वतपर हुआ था | यहां पर सम्राट् श्रेणिक और उनके अन्य पुत्रने भगवान की विशेष भक्ति की थी। यहांपर भगवानका आगमन कई दफे हुआ था । राजगृहमें अभिनवश्रेष्ठोने उनका विशेष आदर किया था | अर्जुन नामक एक माली भी यहां भगवानकी शरण में आया था | अर्जुन अपनी पत्नीके दुश्चरित्रसे बड़ा क्रुद्ध होगया था और उसने कई एक मनुष्यों के प्राण भी ले लिये थे; किन्तु भगवान महावीरजीके उपदेशको सुनकर वह बिलकुल शांत होगया और साधु दशा में उसने समताभावसे अनेक उपसर्ग सहे थे; यह श्वेतांबर शास्त्र प्रगट करते हैं । जिन समय राजा श्रेणिक वोर प्रभूकी बंदनाके लिये समस्त पुरवासियों समेत जारहे थे, उस समय एक मेंढक उनके हाथी के पैर से दबकर प्राणांत कर गया था । दिगम्बर शास्त्र कहते हैं कि वह वीर प्रभुकी भक्ति के प्रभावसे मरकर देव हुआ धौ 1 राजगृह से भगवान श्रावस्ती गये थे । यह आजीविक संपकौशल में वोर प्रभूका दायका मुख्य केन्द्र था, किन्तु तौभी भगप्रभाव । वानका यहां पर भी काफी प्रभाव पड़ा था । उस समय यहांपर राजा प्रसेननित अथवा अग्निदत्त राज्य करते थे | उन्होंने भगवानका स्वागत किया था। जैनों की मान्यता उनके निकट थी और उनकी रानी मछिकाने एक सभागृह बनवाया था; जिसमें ब्राह्मण, जैनी आदि परस्पर तत्त्वचर्चा किया करते थे ।
१ - डिजेबा० पृ० १६ । २- अंतगतदमाओ, डिजेबा० पृ० ९६ । ३- भाक० मा० ३ पृ० २८८-२९३ । ४- लाबद्दु० पृ० ११६ । ५- काब०, पृ० १०९ ।
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