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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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प्रचार अन्तराल काल तक उनके दर्शन ही मुश्किल से होते हैं । म० बुद्धके ५० से ७० वर्षके मध्यवर्ती जीवन घटनाओं का उल्लेख नहीं बराबर मिलता है । रेबरेन्ड बिशप बिगन्डेट सा० तो कहते हैं कि यह काल प्रायः घटनाओंके उल्लेख से कोरा है । ( AD almost blank ) म० बुद्ध के उपरोक्त जीवनकाल की घटनाओंके न मिलनेका कारण सचमुच भगवान महावीरके धर्मप्रचारका प्रभाव है; क्योंकि यह अन्यत्र प्रमाणित किया जाचुका है कि जिस समय भगवान महावीरजी ने अपना धर्मप्रचार प्रारम्भ किया था, उस समय म० बुद्ध अपने ' मध्य मार्ग' का प्रचार प्रारम्भ कर चुके थे और अनुमान से ४५ या ४८ वर्षकी अवस्था में थे । अतः यह बिलकुल सम्भव है कि महावीरजीका उपदेश इस अन्तराल कालमें इतना प्रभावशाली अवश्य होगया था कि म० बुद्धके जीवन के ५० वें वर्ष से उनकी जीवन घटनायें प्रायः नहीं मिलती हैं ।
'सामगाम सुतन्त' में भगवान महावीरजीके निर्वाण प्राप्तिकी खबर पाकर म० बुद्धके प्रमुख शिष्य आनन्द बड़े हर्षित हुये थे और बड़ी उत्सुकतासे यह समाचार म० बुद्धको सुनानेके लिये दौड़े गये थे, इससे भी साफ प्रगट है कि म० गौतमबुद्धको महावीरजी के धर्मप्रचारके समक्ष अवश्य ही हानि उठानी पड़ी थी; क्योंकि यदि ऐसा न होता तो महावीरजीके निर्वाण पालेनेकी घटनाको बौद्ध बड़ी उत्कण्ठा और हर्षभाव से नहीं देखते | भगवान महावीर के समक्ष म० बुद्धका प्रभाव क्षीण पड़ेने में एक और कारण
२-भमबु० पृ० १००-११० । २ - सॉन्डर्स, गौतमबुद्ध १० ५४ । ३-भमबु० पृ० १०१ । ४-डायोलॉग्स ऑफ बुद्ध भा० ३ पृ० ११२
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