________________
ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर ।
[ ८३
कि उनने दाढ़ी और सिरके बाल नोंचने की परीषद्को सहन किया था । यह परीषद जैन मुनियोंका खास चिन्ह है । तिज़पर गया शीर्षपर उन्होंने पांच भिक्षुओं के साथ जो साधु जीवन व्यतीत किया था, वह ठीक जैन साधुके जीवन के समान था । पांच भिक्षुओं के नाम भी जैन साधुओं के अनुरूप थे । कहा गया है कि 'भिक्षु ' शब्दका व्यवहार सर्व प्रथम केवल जैनों अथवा बौद्धों द्वारा हुआ था; किन्तु जिस समय म० बुद्ध उन पांच भिक्षुओं के माथ थे उनसमय उन्होंने बौद्धवर्म का नीवारोपण नहीं किया था । अतः निःसंदेह उक्त भिक्षुगण जैन थे और उनके साथ ही म० वुइने जैन साधुका जीवन व्यतीत किया था; जैसे कि वह स्वयं स्वीकार करते हैं। सर भण्डारकर भी म० बुद्धको एक समय जैन मुनि हुआ बतला चुके हैं । किन्तु जैन मुनिकी काठेन परीषहों को सहन करनेपर भी म० बुद्धको शीघ्र ही केवलज्ञानकी प्राप्ति नहीं हुई तो वह हताश होगये और उन्होंने मध्यका मार्ग ढूंढ निकाला; जो जैनधर्मकी कठिन तपस्या और हिन्दु धर्मके क्रियाकाण्डके बीच एक राजीनामा मात्र था ।
किन्हीं लोगों का यह ख़याल है कि म० गौतमबुद्ध और भगवान महावोर और भगवान महावीर एक व्यक्ति थे और जैनम० गौतमबुद्ध एक धर्म बौद्धधर्मकी एक शाखा है, किंतु इस व्यक्ति नहीं थे और जैनधर्म बौद्धधर्मकी मान्यतामै कुछ भी तथ्य नहीं है ।" स्वयं शाखा नहीं है। बौद्ध ग्रंथोंसे भगवान महावीरजीका स्वतंत्र
१ - डिस्कोर्सस ऑफ गोतम १।९०-९९ । २-ममनु० १० ४७ । 3 - डायोलग्स ऑफ बुद्ध (SBB) Intro, ४ - जेहि ० १ १०५ । -Js. IL Intro.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com