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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर | ६९
विक संप्रदाय के समान अचेल को भी एक संरदाय मानना उचित नहीं है और न वह आजीविकोंका ही अपर नाम था ।
किन्हीं विद्वानोंका यह भी अनुमान है कि भगवान महावीभगवान महावीरपर रनीने अपने धर्म निर्माण में बहुतसी बातोंकी गोशालका प्रभाव सहायता आजीविक संप्रदाय से ली थी !' नहीं पड़ा था। खासकर वह कहते हैं कि नग्नताको भगवान महावीरने गोशालसे ग्रहण किया था; किंतु उनके इस कथन में बहुत कम तथ्य है । जिस समय श्वेतांबरोंके अनुसार गोशाल महा1 । वीरजीको मिला था, उस समय वह सवस्त्र था | भगवान के साथ रहकर उसने वस्त्रोंका त्याग किया था और तब उसको भगवानने अपना शिष्य बनाया था, यह प्रगट है । अथ च यह भी ज्ञात है कि भगवान महावीरजीने साधु दीक्षा ग्रहण करनेके समयसे ही नग्नभेष धारण किया था; जैसे कि ऊपर लिखा जाचुका है । अतएव यह बिल्कुल असंभव है कि गोशाल द्वारा प्रभावित होकर महावीरजीने नग्नमेष धारण किया हो। इसी प्रकार आजीविक्रोंके कतिपय सिद्धांतों की सदृशता म० महावीरके सिद्धांतों से होती देखकर, यह कहना कि महावीरजीने अपने सिद्धांत गठन में गोशालसे सहायता ली, कुछ महत्व नहीं रखता; क्योंकि आजीविक संप्रदायकी उत्पत्ति जिस समय हुई थी, उस समय भगवान पार्श्वनाम द्वारा नैनधर्मका पुनः प्रचार होचुका था ।
Js, II, Intros. XXIX; आजी०, हिली० पृ० ३८-०१ व हिमोफि० १० ३१६-३९९ । २ - उद० हाणके, Appendix
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