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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [५३ निग्रन्थ (निगन्थ) के भाव 'बन्धनोंसे मुक्त' के हैं, यह बात बौद्ध शास्त्रोंसे भी प्रकट है। उस समय जैनों का उल्लेख 'निर्ग्रन्थ' नामसे होता था; जैसे
कि वे उपगन्त, 'आईत' नाम से प्रख्यात 'निर्ग्रन्य' जैनी हैं।
- हुये थे। किन्हीं लोगों का विश्वास है कि जैन तीर्थंकरों की शिक्षा उस समय लिपिबद्ध नहीं थी, इसलिये उनको लोग 'निग्रन्थ' कहते थे किन्तु जैन शास्त्रों में निग्रन्थ का अर्थ 'ग्रंथियोंसे रहित' किया गया है और इस शब्दका प्रयोग प्रायः जैन मुनियों के लिये ही हुआ है; यद्यपि बौद्ध शास्त्रोम कहा गृहस्थ और मुनि सबके लिये समान रूपमें व्यवहृत हुआ मिलता है। बौद्धोंके 'चुल्ल नहेम' में निग्रन्थ श्रावकोंका देवता निग्रन्थ लिखा है। यहांपर निर्ग्रन्थ शब्द दि जैन मुनिके लिये प्रयुक्त हुआ है किन्तु 'महावग्ग' के सीह नामक कथानक और 'मज्झिमनिकाय' के 'सच्च निगन्यपुत्त' के माख्यानमें 'निम्रन्थ' शब्द जैन गृहस्थ के लिये व्यवहृत हुमा है । अतएव उस समय नैनसंघ मात्र निर्ग्रन्थ' नामसे परिचित था। इस कारण भगवान महावीर ज्ञातृपुत्र भी 'निर्ग्रन्थ ' कहे गये हैं। बौड कहते हैं कि महावीरनी सर्व विद्याओंके पारगामी थे, इस कारण 'निगन्य' कहलाते थे।
१-डायोलॉग्स ऑफ दी बुद, मा० २ पृ. ७४-७५ । २-वीर, मा. ५ पृ. २३९-२४० । ३-मूला० ३० । ४-भमनु० पृ. २३५ । ५-निगन्ट सावकानाम् निगडो देवता पृ० १७१।६-महा० पृ० ११६॥
-मनि. मा. १ पृ. २२५ । ८-ॐबु. पृ० ३.२ ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com