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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [५१
एक दफे उनने एक मत्त हाथीको देखते ही देखते वश कर लिया था और दूसरी बार जब वे राज्योद्यानमें बाल सहचरों समेत खेल रहे थे, तब उनने एक विकराल सर्पको बातकी बातमें कोल दिया था । वह महापुरुष थे । उन्होंने अपने पूर्वभवों इतना विशिष्ट पुण्य मंचय कर लिया था कि उनके जन्मसे ही अनेक असाधारण लक्षण और गुण विद्यमान थे । वे जन्ममे ही मति, अति और भवधिज्ञानसे विभूषित थे । इमलिये उनका ज्ञान अना. यात बड़ा चढ़ा था। रानमहलमें वे काव्य, पुराण आदि ग्रन्थों का वृद्ध पठन पाठन करते थे । इस छोटी उनासे ही उनका स्वभाव न्यागवृत्तिको लिये हुये था । जब वह अट वर्ष के थे, तब उनने श्रावकोंके व्रतोंको ग्रहण कर लिया था । अहिंसा, मन्य, गोल, अचौर्य और परिग्रह प्रमाण नियमों का वह समुचित पालन करते थे । मंनयविनय नामक चारण मुनि उनके दर्शन पार सन्मतिको प्राप्त हुये थे |x
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,-भम० पृ. ६९-८२ । वतांव के अर्थाचीन ग्रंथों में लिखा है। कि 'गेन्द्र' नामका एक व्याकरण ग्रंय बनाया था, किन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता । (जन हि. भा. १८ पृ. ३४५) ।
म० बुबके समकालीन मतप्रर्वतकोम एक संजय अथवा संजय वात्योपुत्र नामक भी था । बौद्ध करने है कि इनके शिष्य मोडल यन
और सारीपुत्र थे; जो बौद्ध होगये थे । 'जैन शास्त्रों में मौद्र यायनको पहले जैन मुनि लिखा है । अत: अजय वायोपुत्र का भी जन होना सुसंगत है। हम समझते है, संजय चारण मुनि और यह एक ही व्यक्ति थे । विशेषके लिये देखो 'भगवान महावीर और म. बुद्ध' पृ. २२-२३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com