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संक्षिप्त जैन इतिहास । था, इसलिये बड़ा वैभवशाली थी । जैनशास्त्रोंमें इसकी शोभाका अपूर्व वर्णन मिलता है । फिर जिस समय भगवान महावीरका जन्म होनेको हुआ था, उस समय तो, वह कहते हैं, कि स्वयं कुबेरने आकर इस नगरका ऐमा दिव्यरूप बना दिया था कि उसे देखकर मलकापुरी भी लज्जित होती थी । भगवानके जन्म पर्यंत वहां स्वा-और रत्नों की वर्षा हुई बतलाई गई है। राजा सिद्धार्थका राजमहल सात मंजिलका था और उसे 'सुनंदावत्तं' प्रासाद कहते थे।
स्वर्गलोकके पुष्पोत्तर विमानसे चयकर वहांके देवका जीव भगवान महावीर. आषाढ़ शुक्ला षष्ठीके उत्तगफाल्गुणी नक्षत्र में का जन्म और रानी त्रिशलाके गर्भमें आया था। उससमय
बाल्यजीवन । उनको १६ शभ स्वप्न दृष्टि पड़े थे* और देवोंने आकर मानन्द उत्सव मनाया था। जैन शास्त्रोंके अनुपार प्रत्येक तीर्थकरके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष अवसरपर देव. गण आकर मानन्दोत्सव मनाते हैं । यह उत्सव भगवानके 'पंचकल्याणक' उत्सव कहलाते हैं । योग्य समयपर चैत्र शुक्ला त्रयोदशोको, जब चन्द्रमा उत्तगफल्गुणी पर था, गनी त्रिशलादेवीने जिनेन्द्र भगवान महावीरका प्रसव किया था । उप्त समय समस्त लोकमें अल्पकालके लिये एक आनन्द लहर दौड़ गई थी। भगवानका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार और हो शयारीसे होता था। शैशवहालसे ही वे बड़े पराक्रमी थे ।
१-कैहिइ. पृ० १०७ । २-उ, पु० पृ. ६०५ । ३-उ० पु० प. ६०४ । * श्वेताम्बर १४ स्वप्न बताए है। ४-उ० पु. १. ६०५ व Js. L. 266.
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