________________
४८ ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
भुक्त होनेके कारण यह लोग बड़े धर्मात्मा और पुण्यशाली थे । वे पापकर्मों से दूर रहते थे और पापसे भयभीत थे । वे हिंसाजनक बुरे काम नहीं करते थे । किसी प्राणीको कष्ट नहीं देते थे । और मांस भोजन भी नहीं करते थे ।' उनकी ऐहिक दशा भी खूब समृद्धिशाली थी और उनका प्रभाव तथा महत्व भी विशेष था । उनका सम्बन्ध उनके प्रमुख द्वारा उस समय करीब २ सब ही प्रतिष्ठित राज्योंसे था । जैनियोंके अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीरका जन्म भी इस वंश में हुआ था, यह लिखा जाचुका है ।
।
•
i
।
भगवान महावीर के पिता नृप सिद्धार्थ थे । यह राजा सर्वार्थ राजा सिद्धार्थ और रानी श्रीमती धर्मात्मा, न्यायी और और ज्ञानवान वी - पुत्र थे । इनको श्रेयांस और रामी त्रिशला जवंश भी कहते थे । यह काश्यपगोत्री इक्ष्वाकू अथवा नाथ या ज्ञतःशी क्षत्री थे । इनका विवाह वैशाली के लिच्छिवि क्षत्रियोंके प्रमुख नेता राजा चेटककी पुत्री प्रियकारिणी अथवा त्रिशला से हुआ था । त्रिशलाको विदेहदत्ता भी कहते थे। यह परम विदुषी महिलारत्न थीं । श्वेताम्बर शास्त्रों में नृप सिद्धार्थको केवल क्षत्रिय सिद्धार्थं लिखा है । इसकारण कतिपय विद्वान् उन्हें साधारण सरदार समझते हैं, किंतु दिगम्बराम्नायके ग्रंथों में उन्हें स्पष्टतः राजा लिखा है । राजा चेटक के समान प्रसिद्ध राजवंश से उनका सम्बंध होना, उनकी प्रतिष्ठा और यादरका विशेष प्रमाण है । वह नाथवंशके मुकुटमणि थे। ऐसा
१-Js. XLV. 416. २ - आसू० ११।१५/१५. Js. XXII. 193. ३-उ० पु० पृ० ६०५ । ४-Js. XXII. 193.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com