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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर ।
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[ ४७ करके होता था । किन्तु 'कुल' शब्दसे भाव केवल इतना ही नहीं था कि उस वंशके प्रमुख व्यक्तिका अधिकार मात्र उप कुलके लोगों पर ही रहे प्रत्युत उसकी मुख्यता और अधिकार उस कुलके माधिपत्य में रहे समस्त देशपर व्याप्त होता था ।' कोल्छागके नाथ कुलवाले क्षत्री अवश्य ही वृद्धि प्रजातंत्र राज्य में सम्मिलित थे । इसीलिये उनमें प्रमुख नेता, उनकी ओरसे उस संघ प्रतिनिधित्वका अधिकार रखते थे । यही कारण है कि उनका उल्लेख 'कुलनृप' रूपमें हुआ है । यह नाम कुल अपेक्षा ही है-व्यक्तिगत नाम यह नहीं है ।
इस उल्लेख से यह भी विदित होता है कि राजा सिद्धार्थका विशेष सम्पर्क कोलागसे न होकर कुण्डग्राम से था । यही कारण है कि वहांका नेता कोई अन्य व्यक्ति प्रगट किया गया है। इससे जातृवंशी अथवा नाथकुलके क्षत्रियोंके निवासस्थानकी स्पष्टता और उनका वृजि-प्रजातंत्र में शामिल होना प्रगट है । प्रजातंत्र रामसंघ इन क्षत्री कुलोंके मुखियायोंकी कपिल मुख्य कार्यकर्ती थी । इन सदस्यों का नामोल्लेख 'गा' रूपमें होता था, यह बात - कौटिल्य अर्थशास्त्रमे स्पष्ट है । '
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ज्ञानृवंशी क्षत्री मुख्यतः जनोंके २३ वें तीर्थंकर भगवान शांत्रिक क्षत्रियोंका पार्श्वनाथनी के धर्मशासन के भक्त थे । उपरान्त धम । जब भगवान महावीरजीका धर्मप्रचार होगया था, तब वे नियमानुसार बीर संघके उशपक होगये थे । जैनधर्म१- काभ्रे ० १९१८, पृ० १६२-१६४ । २-अर्थशास्त्र, शाम शास्त्री,
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३० ४५५। ३०० १० ३१.५ उद० २६
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