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संक्षिप्त जैन इतिहास । राजा सिद्धार्थने महान पुत्रके जन्मके उपलक्षमें बड़ा आनंद भगवान महावीरके मनाया था। कुण्डग्रामकी उस समय खूब
नाम । अभिवृद्धि हुई थी। इसलिये उन्होंने भगवान का नाम 'वईमान' रक्खा था। वैसे साधारणतः वह ज्ञात त्रिय रूपमें प्रख्यात थे। उन्हें "महावीर" "वीर" "मतिवीर" "सन्मात” और “ नाथकुलनन्दन" भी कहते थे । दक्षिण भारतके एक कनड़ी भाषाके ग्रन्थमें भगवानका एक अन्य नाम "वसुकबान्धव” लिखा है । हिन्दूशास्त्रों में उनका नामोल्लेख 'मत महिमन् या महामान्य' रूपमें हुआ है। श्वेताम्बरोंके 'उपासक दशास्त्र' में उनको महामाहने' अथवा 'नायमुनि' लिखा है । यह नाम उनकी साधु अवस्थाके प्रतीत होते हैं।
मिसेज स्टीवेन्सम कहती हैं कि वे ज्ञातपुत्र, नामपुत्र, शासननायक और बुद्ध नामोंसे भी परिचित हैं । यह नाम विशेषण रूपमें हैं और इस तरह के विशेषण जैनशास्त्रोंमें १००८ बतलाये गये हैं। ' वैशालिय ' वे इस कारण कहलाते थे कि उनका सम्बन्ध वैशालीसे विशेष था। किन्तु बौद्धोंके पाली साहित्यमें उनका उल्लेख 'निगन्थ नाथपुत्त' के नामसे हुमा है । वह नाथवंशके राजर्षि थे, इसलिये बौद्धोंने उन्हें इस नामसे सम्बोधित किया है। जैनशास्त्रोंमें भी उनका उल्लेख इस रूपमें हुभा मिलता है।"
-सक्ष्यद्राए ३०७ । २-लाभ० पृ० ६ । ३-जैग०, भा० २४ पृ. ३२ । ४-भ० पा०, पृ. ९६-१९। ५-उद० ७ । ६-उद० १९ । ७-हॉज०, पृ. २७। ८-जिन सहस्रनाम स्तोत्र देखो। ९-Js. II, 261. १०-भमबु. पृ० १८८-२७० वJs. II.Intro. ११-Js. Pt. II. Intro. महावीर चरित पृ०, व उ० पु० पृ. ६०५......।
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