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संक्षिप्त जैन इतिहास |
कराने के लिये तबतक ब्रह्मचारी रहकर कठिन इन्द्रियनिग्रह और परीषद जय करनेके मार्ग में पग बढ़ानेका निश्चय कर लिया था । अपने पिता के राजकार्य में सहायता देते हुए और गृहस्थकी रंगरलियों में रहते हुए भी भगवान संयमका विशेष रीति से अभ्यास कर रहे थे | उनके हृदयपर वैराग्यका गाढा रंग पहले से ही चढ़ा हुआ था | सहसा एक रोज उनको आत्मज्ञान प्रकट हुआ और वह उठकर ' वनषण्ड ' नामक उद्यानमें पहुंच गए। माता-पिता आदिने उनको बहुत कुछ रोकना चाहा; किन्तु वह उन सबको मीठी वाणी से प्रसन्न कर विदा ले आये ! मार्गशीर्ष शुक्ला की दशमीको वह अपनी 'चन्द्राभा' नामक पालखी में आरूढ़ हो नायखंड नकी गृहस्थदशामें ही उनके माता पिताका स्वर्गवास होगया था और उनके ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्द्धन राज्याधिकारी हुए थे । बौद्ध ग्रन्थोंनें भी म बुद्धकी माताका जन्मते ही परलोकवासी होना लिखा है तथा उनमें उनके भाई नन्द बताये गये हैं । ( साम्स० पृ० १२६ ) म० बुद्ध 'सम्बोधि' प्राप्त कर लेनेके पश्चात् भी कवलाहार करते थे । ( महावग्ग SBE पृ० ८२) भगवान महादीरके विषय में भी श्वेताम्बर शास्त्र यही कहते हैं । म० बुद्धके जीवन में उनके भिक्षु संघ में मतमेद खड़ा हुआ था ( महावग्ग ८ ); श्वेताम्बर भी कहते हैं कि भगवानके जमाई जमाठीने उनके विरुद्ध एक असफल आवाज़ उठाई थी । बौद्ध कहते हैं कि परिनियान के समय भी म० बुद्धने उपदेश दिया था । और उनके शरीरान्तपर लिच्छिवि, मल्ल आदि राजा आये थे ( Beal's Life of Buddha, 101 - 131 ) श्वेताम्बर भी कहते है कि भगवान महावीरने पावामें पहुंचकर निर्वाण समय में कुछ पहले तक उपदेश दिया था और उनके निर्वाणपर लिच्छिवि, मल आदि राजगण आये थे । बुद्धकी मृत्यु उपरान्त उनका संघ वैशाली में एकत्रित हुआ था और उसने पिटक ग्रंथोंको व्यवस्थित किया था। इसके बाद अशोक के समय में
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