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जात्रेक क्षत्री और भगवान महावीर। [५९ भी इस दिगम्बर दीक्षाको ग्रहण किया था। बौद्धाचार्य बुद्धघोष अचेलक शब्दक अर्थ नग्न ही करते हैं । जन मुनियों का उल्लेख स्वयं जन ग्रन्थों एवं बौद्धोंके पाली और चीनी भाषाओंके ग्रन्थों में भी अचेलक रूपसे हुआ मिलता है । हिन्दुओं के प्राचीनसे प्राचीन शास्त्रोंमें भी जैन मुनियोंको 'नग्न' 'विवसन' आदि लिखा है। अचेलक अर्थात् नग्न दशा ही कल्याणकारी है और यही मोक्ष प्राप्त कराने का सनातन लिंग है, यह बात जनमतमें प्राचीनकालसे स्वीकृत है।
अतएव जैन मुनियोंके यथानात दिगम्बर वेषमें शंका करना वृथा है । वास्तवमें सांसारिक बंधनोंसे मुक्ति उसी हालतमें मिल सक्ती है, जब मनुष्य वाह्य पदार्थोसे रंचमात्र भी सम्बन्ध अथवा संसर्ग नहीं रखता है । इसी कारण एक जैन मुनिको अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओंपर सर्वथा विनयी होना परमावश्यक होता है । इस विनयमें उसे सर्वोपरि 'लज्जा' को परास्त करना पड़ता है । यह प्राकृत सुसंगत है । संयमी पुरुषको असली हालतअपने प्रारत स्वरूपमें पहुंचना है । अतएव यह यथानात रूप उसके लिये परमावश्यक है। उस व्यक्तिकी निस्टहता और इंद्रियनिग्रहका प्रत्यक्ष प्रमाण है । नग्नदशामें वह सांसारिक संसर्गसे छूट जाता है। कपड़ोंकी झंझटसे छूटनेपर मनुष्य अनेक झंझटोसे छुट
१-कचेलको ति निच्चेलो नग्गो-पापश्च सूदन, Siamese Ed. II, p. 67. २-भमबु० पृ० २५५-दीनि. पाटिक सुत्त। ३-वार, मा. ४ पृ. ३५४ । ४-ऋग्वेद १०-१३५; वराहमिहिर संहिता १९-११ व ४५-५० महामारत ३२६-२७, विष्णुपुराण ॥१८; मागवत १३, बेदान्तमृत्र २।२।३३-३६: दशकुमार चरित २ इत्यादि।
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