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लिच्छिवि आदि गणराज्य । लिच्छिकि आदि गणराज्य ।
ई० पू० ६ वीं शताब्दि । उस समय जिस प्रकार उत्तरीय भारतमें मगधपाम्राज्य अपने प्राचीन भारत में स्वाधीन और पराक्रमी राजाओं के लिये प्रसिद्ध प्रजातंत्र राज्य। था, उसी प्रकार गणराज्यों अथवा प्रजातंत्र राज्यों में वैशालीका लिच्छवि वंश प्रधान था। यह बात तो आन स्पष्ट ही है कि प्राचीन भारतमें प्रजातंत्र राज्य थे। हिंदुओंके महाभारतमें ऐसे कई राज्यों का उल्लेख पाया है। बौहों की जात कथाओं में भी उससमय ऐपी राज संस्थाओं की झलक मिलती है।' नैनोंके शास्त्र भी इस बातका ममर्थन करते हैं । इन प्रजातंत्र राज्योंकी राज्य व्यवस्था नागरिक लोगों को एक सभा द्वारा होती थी; निसका निर्णय वोटों द्वारा होता था। तिनके डालकर सब सभासद वोट देते थे और बहुमत सर्वमान्य होता था। वृद्ध और अनुभवी पुरुषों को राज्य प्रबंधके कार्य सौंपे जाते थे और उन्हीं मेसे एक प्रभावशाली व्यक्ति सभापति चुन लिया जाता था। यह सब गना कहलाते थे।
वैशालीके लिच्छिवि क्षत्रियों का राज्य ऐसा ही था । उसवैशालीके लच्छिाव समय इनके प्रनातंत्र राज्यमें आठ जातियां क्षत्रियोंको प्रजातंत्र सम्मिलित थीं। विदेहके क्षत्री लोग भी
राज्य । इस प्रजातंत्र राज्यमें शामिल थे, जिसकी रानधानी मिथिला थी। लिच्छिवि और विदेह राज्यों का संयुक्त
१-माइ०, पृ. ५८-५९ । २-श्वे. कल्पसूत्र (१२८) में काशीकौशल, लिच्छवि और मलिक गणराज्योका उल्लेख है। दि.ब्रन शाचोसे भी यह सिद्ध है। भमबु. पृ० ६५-६६।
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