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संक्षिप्त जैन इतिहास । राजा चेटकका यह पारवारिक परिचय बड़े महत्वका है। उपरान्तमें लिच्छिवि इससे प्रगट होता है कि उससमयके प्रायः
वंश। मुख्य राज्योंसे उनका सम्पर्क विशेष था। जैनधर्मका विस्तार भी उससमय खूब होरहा था। लिच्छिवि प्रजातंत्र राज्य भी उनकी प्रमुखतामें खूब उन्नति कर रहा था। किन्तु उनकी यह उन्नति मगध नरेश अजातशत्रुको असह्य हुई थी और उसने इनपर आक्रमण किया था, यह लिखा जाचुका है। किन्हीं विद्वानोंका कहना है कि अभयकुमार, जिसका सम्बन्ध लिच्छिवियोंसे था, उससे डरकर अजातशत्रुने वैशालीसे युद्ध छेड़ दिया था; किंतु जैन शास्त्रोंके अनुसार यह संभव नहीं है। क्योंकि अभयकुमारके मुनिदीक्षा ले लेनेके पश्चात् अजातशत्रुको मगधका राजसिंहासन मिला था । अतः अभयकुमारसे उसे डरनेके लिये कोई कारण शेष नहीं था।
यह संभव है कि अजातशत्रुके बौद्धधर्मकी ओर आकर्षित होकर अपने पिता श्रेणिक महाराजको कष्ट देनेके कारण, लिच्छिवियोंने कुछ रुष्टता धारण की हो और उसीसे चौकन्ना होकर अजातशत्रुने उनको अपने भाधीन कर लेना उचित समझा हो। कुछ भी हो, इस युद्धके साथ ही लिच्छिवियोंकी स्वाधीनता जाती रही थी और वे मगध साम्राज्यके आधीन रहे थे। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्यके समयमें भी वह प्रजातंत्रात्मक रूपमें राज्य कर रहे थे; निसका अनुकरण करनेकी सलाह कौटिल्यने दी थी। किन्तु जो स्वतंत्रता उनको चन्द्रगुप्तके राज्यमें प्राप्त थी, वह अशोकके समय
१-क्षत्री क्लैन्स०, पृ. १३१ ।
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