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४० ] संक्षिप्त जैन इतिहास । आर्यिकासे जिनदीक्षा ग्रहण कर ली थी। कदाचित् सात्यक मुनिका प्रेम ज्येष्ठासे हटा नहीं था और हठात एक दिवस उन्होंने अपने शीलरूपी रत्नको ज्येष्ठाके संसर्गसे खो दिया था। इस दुक्रियाका उन्हें बड़ा पश्चाताप हुआ था और प्रायश्चित्त लेकर वह फिरसे मुनि होगये थे । ज्येष्ठा गर्भवती हुई थी, सो उपको दया करके चेलनीने अपने यहां रक्खा था । पुत्र प्रसव करके वह भी प्रायश्चित्त लेकर पुनः आर्यिका हो गई थी और अपने कृतपापके लिये घोर तपश्चरण करने लगी थी। इनका पुत्र द्वादशाङ्कका पाठी रुद्र नामक मुनि हुआ था। चंदना इन सब बहिनोंमें छोटी थी और उसका विवाह
_ नहीं हुआ था। वह मानन्म कुमारी रही थी। सती चंदना ।
" ' वह सर्वगुण सम्पन्न परम सुन्दरी थीं। एक दिन जब वह राज्योद्यान में वायुसेवन कर रही थीं, उस समय एक विद्याधर उन्हें उठाकर विमानमें ले उड़ा। किंतु अपनी स्त्रीके भयके कारण वह उनको अपने घर नहीं ले गया, बलिक मार्ग में ही एक वनमें छोड़ गया । शोकातुर चन्दनाको उस समय एक भीलने ले नाकर अपने राजाके सुपुर्द कर दिया । इस दुष्ट भीलने चन्दनाको बहुत त्रास दिये; किन्तु वह सती अपने धर्मसे चलित न हुई । हठात् उसने एक व्यापारीके हाथ उनको वेव दिया; निसने भी निराश होकर कौशाम्बी में उन्हें कुछ रुपये लेकर वृषभसेन नामक धनिक सेठके हवाले कर दिया।
दयालु सेठने चंदनाको बड़े प्रेमसे घरमें रहने दिया। चंदना
१-आ., भा• २ पृ. ९६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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