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लिच्छिवि आदि गणराज्य ।
महावीरजीका शुभागमन बीतशोका नगरीमें होनावे । कदाचित समागम ही ऐसा लगा कि भगवानका समोशरण वहांके 'मृगवन' नामक उद्यानमें आकर विराजमान हुमा । उदायनने बड़ी भक्तिसे भगवानकी वंदना की और अन्तमें वह अपने भानजे वेशीको राज्य सौंपकर नग्न श्रमण होगये। दिगम्बर जैनशास्त्रोंमें यह राना अपने निर्विचिकित्सा अंग' का पालन करने के लिये प्रसिद्ध हैं। यह बड़े दानी और विचारशील राजा थे। सारी प्रजाका उनपर बहुत प्रेम था । दिगम्बर मान्यताके अनुसार उनने अपने पुत्रको राज्यसिंहासन पर बैठाया था और स्वयं वीर भगवान के समोशरणमें जाकर मुनि होगए थे। अन्तमें घातिया कर्मोका नाशकर वह मोक्ष-लक्ष्मीके वल्लभ बने थे। रानी प्रभावती निनदीक्षा ग्रहण करके समाधिमरण प्राप्त करके ब्रह्मस्वर्गमे देव हुई थी। राना चेटककी अबशेष तीन कन्यायोंमेंसे चेकनीका विवाह
. मगघदेशके राजा श्रेणिक बिम्बसारसे हुमा चेलिनी और ज्येष्ठा।
'था, यह पहले लिखा जा चुका है । चेलनोकी बहिन ज्येष्ठाका भी प्रेम मगधनरेश पर था; किंतु उसका मनोरथ सिद्ध नहीं हो सका था। गांधार देशस्थ महीपुरके राना सात्यकने उसके साथ विवाह करना चाहा था; किंतु राजा चेटकने बह सम्बंध स्वीकार नहीं किया था और उसे रणक्षेत्र में परास्त करके भगा दिया था। सात्यक जैन संघमें जाकर दिगम्बर जैन मुनि होगया था और कालांतर ज्येष्ठाने भी अपनी मामी यशस्वती
१-टे. पृ. ९८-११६ । २-भाक., भा० १ पृ. ८८ । ३-१० पु., पृ. ६३६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com