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संक्षिप्त जैन इतिहास । गुफावाले शिलालेखमें निस नन्दका उल्लेख आया है, उसे श्रीयुत काशीप्रसाद जायसवालने नन्दिवर्धन ही बतलाया है। इसलिये वे नन्दराजाओंको दो भागोंमें (१) प्राचीन (२) और नवीन नन्द रूपमें स्थापित करते हैं।
नन्दिवर्द्धन भी जैनधर्म भक्त प्रतीत होते हैं क्योंकि कलिङ्ग विजय करके वहांसे वह एक जैन मूर्ति भी लाये थे और उसे उनने सुरक्षित रक्खा था। कलिङ्गमें उनने एक नहर भी बनवाई थी। अजातशत्रु, उदयन और नन्दिवईनकी मूर्तियां भी मिली हैं, जो कलकत्ते और मथुगके मनायबघरमें रक्खी हुई हैं। इससे इन रानाओंका विशेष प्रभावशाली होना प्रकट है । नन्दिवर्द्धनके द्वारा मगधराज्यकी उन्नति विशेष हुई दृष्टि पड़ती है, कि उसका आधिपत्य कलिङ्ग देशतक व्याप्त होगया था। महानन्दिनके सम्बन्धमें कुछ अधिक ज्ञात नहीं होता। यद्यपि यह प्रकट है कि उसकी शूद्रा रानीसे महापद्मनन्दका जन्म हुआ था, जिससे नंदवंशकी उत्पत्ति हुई थी और वह मगधराज्यका अधिकारी हुमा था।
. १-जविमोसो, भा० ४ पृ० ४३५ ।
२-जबिओसो०, भाग ४ पृ० ४६३ । ३-जविमोसो०, भाग १ पृ. ८८-१६५ मा. ६
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