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लिच्छिवि आदि गणराज्य |
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३५ अवस्थित बतलाया है; किन्तु यह भ्रामक उल्लेख कवि कालिदासके " श्री विशालमविशालम् " वाक्यके कारण हुआ प्रतीत होता है: क्योंकि कालिदासजी ने यह वाक्य उज्जैनीके लिये व्यवहृत किया था और वह अवश्य ही सिंधु नद-वर्ती प्रदेशमें अवस्थित थी । जैन कवियोंने अपने समय में बहुप्रसिद्ध इस विशाला (उज्जैनी) को ही महाराज चेटककी राजधानी मानकर उसे सिंधु देशमें लिख दिया है । वैसे वह विदेह देशके निकट ही घी: जैसे कि आज I उसके व्वंसावशेष वहां मिल रहे हैं ।
वैशालीके राजा चेटक थे, यह बात जैन शास्त्र प्रकट करते राजा चेटक और हैं। इसके अर्थ यही हैं कि वह वज्जि प्रजाउनका परिवार | तंत्र राज्य के प्रमुख राजा थे । यह इक्ष्वाकुवंशी व शिष्टगोत्री क्षत्री थे । उत्तरपुगण में (१० ६४० ) इनको सोमवंशी लिखा है, जो इक्ष्वाकुवंशका एक भेद है । इनकी रानीका नाम भद्रा था जो अपने पति के सर्वथा उपयुक्त थी । राजा चेटक बड़े पराक्रमी, वीर योद्धा और विनयो तथा अरहंत देव के अनुयायी थे ।
१- प्रेच० पृ० १५० उ० पु० ० ६३४, इत्यादि ।
२ - भवभूति के मालतीमाधव नामक नाटक में उजनी के पास में सिन्धुनदी और उसके किनारे अवस्थित नावाका उल्लेख है। जैन कवि धनपालने इस प्रदेश के लोगों का उल्लेख 'संघव' नाममे किया है अर्थात् सिंधुदेशके वासी । अतएव उपरोक सिन्धु नदोकी अपेक्षा ही यह प्रदेश 'सिन्धु देश' के नामसे उल्लिखित हुआ प्रतीत होता है। पश्चिमीय विधु प्रदेश इसे अलग था। चूंकि उजनी, जिनका उल्लेख कवि कालिदास 'मेघदूत' में विशाल रूपने करते है, उपरोक्त निधुनदीके समीर थी, वह जैन लेखकों द्वारा सिंधुप्रदेश में बनाई जाने लगी ।
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