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संक्षिप्त जैन इतिहास। विदेहकी राजकुमारीका पुत्र था, जो वैदेही-चेलना अथवा श्रीभद्रा या भद्रा कहलाती थी। कुणिक भी अपनी माताकी अपेक्षा वैदेही पुत्र' के नामसे प्रख्यात था। जैन शास्त्र भी चेलनीको वैशालीके राजा चेटककी पुत्री बतलाते हैं।
चेलनी भगवान् महावीरकी मौसी थी। जिस समय चेल. नीका विवाह सम्राट् श्रेणिकके साथ हुआ था, उससमय वह बौद्ध था; किन्तु उपरांत महाराणी चेलनीके प्रयत्नसे वह जैनधर्मानुयायी हुभा था। बौद्ध धर्मके लिये उन्होंने कुछ विशेष कार्य नहीं किया था और वह बहुत दिनों तक बौद्ध रहे भी नहीं थे; यही कारण है कि बौद्ध ग्रन्थों में उनका उल्लेख काठनतासे मिलता है । महा. राणी चेलनीके अतिरिक्त कौशलकी एक राजकुमारी भी मम्राट श्रेणिककी पत्नी थीं। किन्तु इन सबमें पटरानी (महादेवी )का पद चेलनीको ही प्राप्त था। चेलनी जैनधर्म की परम भक्त थी और जैनधर्मकी प्रभावनाके लिये इसने अनेक कार्य किये थे। इसके अनातशत्रुके अतिरिक्त छ पुत्र और हुये थे; अर्थात् (१) अनातशत्रु (कुणिक वा अक्रूर ), (.; वारिषेण, (३) हल्ल, (४) विदल, (५) जितशत्रु, (६) गजकुमार (दंतिकुमार) और (७) मेघकुमार । किंतु इनका मौसेरा भाई अभयकुमार इन सबसे बड़ा था और वह जैन मुनि होनेके पहले तक युवराज रहा था । __मनातशत्रुकी बहिन गुणवती नामकी थी और दूसरी मौसेरी
१-भ० म० पृ० १४३ । २-३० पु०, पृ० ६३४ श्वे० निर्यावली सुत्रमें भी उन्हें राजा चेटककी पुत्री लिखा है। Gs., Vol xxII, Intro. pp. XIII. ३-भ० म० पृ० १३४-१५१ ।
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