Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 118
________________ संवेगरंगशाला श्लोक नं. ३२८६-३३१८ ॥९२॥ आयुः परिज्ञानद्वारे एकादशप्रतिद्वारम् सत्यो वि सरीरेणं, न नियइ निययामखंधसिहरं जो । तं पि न चिरकालेणं, कालेणं कवलियं कलसु ॥८६॥ धरिसिज्जन्ता वि दढं, निस्सद्दा चेय जस्स करचरणा । जस्स य निसि दिसिमोहो, रेयं च सरन्तमऽइरितं ॥८७॥ |छीयणकासणमुत्तण-किरियासुं कारणं विणा चेव । जस्स य अपुव्यसद्दो, जायइ जमकवलिओ सोऽवि ॥८८॥ व्हायंतस्स वि नलिणी-दलं व सलिलेण छिप्पड़ न जस्स । अंगं संगं काही, स जमेण समं छमासंडतो ॥ ८९ ॥ व्हायाऽणुलित्तगत्तस्स, जस्स सुक्कइ उरत्थलं पढमं । सेसंडगेसुं उल्लेसु, अद्धमासं न सो जियइ ॥९०॥ | तेल्लाऽऽविल व्व लुक्खा वि, जस्स सहसा भवंति सुसिणिद्धा । केसा असमारा वि हु, विभत्तसीमन्तजुत्ता ॥ ९१ ॥ तहऽसंखित्तभुजुयलं, दीसह य अतक्कियं सुसंखितं । अंतोपविट्ठमऽहवा, विणिग्गयं लुलियपम्हउडं धूयकवोयऽच्छिसमं, उम्मेसनिमेसरहियमऽच्छिजुयं । जस्स पणट्ठऽब्भत्ता - लोयं व लहुं मरइ सो वि नासा वि जस्स सहसा, कुडिला पिडगाऽऽउला दढं फुडिया । सबुडछिड्डा य भवे, भवंडतरं सो वि अभिलसइ ॥ ९४ ॥ अनिमित्तं चिय सत्ती, सील बाऊ 2 सई बलं बुद्धी । छक्कमिणं विणियत्तइ, छम्मासाऽऽसन्नमरणस्स नीसरइ देहवेहे, विगंधि अइकसिणसोणियं जस्स । जीहामूले सूलं, पाणितले वा महावियणा साडो तयकेसाणं, लुयरोमाणं न जस्स वुड्ढी य । हियए अईव उम्हा, जस्सुयरे पुण सुसीयतं वालविलुंचणवेयण - मऽणुभवइ न जो उ दिवसछक्केण । अवगच्छ गच्छमाणं व, माणवं तं जमपुरीए भणियं अरिट्ठदारं, जो होज्ज विसिट्ठधारणाकलिओ । तं पुण पडुच्च जंत-प्पओगमह किंपि जंपेमि वक्खेयंऽतरविरओ, तग्गयचित्तो कओवयारविही । पढमं मज्झे नसिउं, अहिगयसत्तस्स नाम ततो अणंतरगाहासूइयजंतठवणा इमा Kn ॥९५॥ ॥९६॥ ॥९७॥ ॥९८॥ ॥९९॥ ॥३३००॥ यः ॐ कारगब्भमऽग्गेय-मंडलं कोणमज्झठियरेहं । सोत्थियलंछियबाहिर-कोणं सिहिजालजडिलं व साऽणुस्सारअगाराइ - छस्सराऽऽयेढियं च पासेसुं । स्वाअक्खरमज्झगयं, चउपासट्ठियगुरुजयारं मारुयमंडलपरिवेढियं च कप्पेत्तु निययबुद्धीए । तं पायतले हियए, सीसे संधीसु य नसेउं n यः ॥४॥ ॥५॥ En ॥७॥ तो पट्ठीए सूरं काउं सूरोदए च्चिय सुनिउणं । सपराऽऽउनिच्छयकए, नियछायं चिय पलोएज्जा जड़ संपुण्णं पासइ, आयरिसं ता न अत्थि मच्चुभयं । अह नियइ कन्नसुन्नं, ता जीवइ वरिसबारसगं करविरहे दस वरिसे, अंगुलिविरहे य अट्ठ वरिसाणि । खंधाऽभावे सत्त उ, पासाण अदंसणे तिन्नि नासाविरहे वरिसं, केसाऽभावे य जियड़ तप्पणगं । सिरवियलच्छायादं-सणे नरो जियड़ छम्मासं गीवाविरहे मासं, चिबुगाऽभावे य जियड़ छम्मासं । एक्कारस चेय दिणाणि, दिट्ठीविरहे जियइ पुरिसो ॥८॥ सच्छिड्डे पुण हियए, दीसंते सत्त वासरे जियड़ । अह छायदुगं पासड़, जमपासे पडड़ ता खिप्पं ॥९॥ न्हायरस य जस्संडगाणि, कन्नपमुहाणि झति सुक्कंति । पुव्यविहिभणिययच्छर-मासदिणेहिं स मरड़ धुवं ॥१०॥ जंतप्पओगदारं, निदंसियं आउजाणणोवायं । एक्कारसमं चरमं विज्जादारं भणामिन्हिं ॥११॥ विज्जामंतकुऊहल - परो वि आराहगो तदऽपरो वा । सम्मं जह सपरगयं, कलेड़ कालं तह भणामि ॥१२॥ विण्णसिऊण सिहाए, स्वा ॐ सीसे तहा क्षि चक्खुम्मि । पं ठविऊण य हियए, हा नाहीए नसितु तओ ॥१३॥ ॐ जुसः ॐ मृत्युंजयाय, ॐ वज्जपाणिने शूलपाणिने हर हर दह दह स्वरूपं दर्शय दर्शय हुं फट् ' एयाए विज्जाए, सुइभूओ दढमऽनन्नचित्तो य । अट्ठत्तरसयवारं सम्मं नयणेऽभिमंतित्ता अरुणोदयवेलाए, छायं पि नियं तहाऽभिमंतिता । पट्ठीए ठावित्ता, आइच्चं निच्चलसरीरा अह अप्पणिज्जमेव-ऽप्पणी कए परकए य परछायं । सम्मं तक्कयपूओ, परमुवउत्तो पलोएज्जा जड़ तं संपन्नं, चिय पासड़ ता नत्थि मरणमाऽऽयरिसं । कम- जंघ - जाणुविरहे, ति-दु- इगवरिसेहिं मरइ धुवं ॥ १७॥ | दसमासंडतंमि तदूरु- संखए कडिखए नवऽट्ठहिं च । मरड़ तदुदरअभावे, मासेहिं पंचहिं छहिं वा ॥१५॥ ॥१६॥ m 1. असमारचिताः । 2. स्मृतिः । 93 अं र यः ऊँ देवदत्त ऑ ॥१॥ રો ૪૫

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