Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 188
________________ संवेगरंगशाला श्लोक नं. ५७७५-५८१० श्रावकपुत्रवसुदत्तदृष्टान्तः - मैथुनस्वरूपम् भूमीए निहाणगयं, अहवा जहकहवि गोवियं संतं । पयडं चिय मुक्कं या, एमेव कहिं वि पडियं वा ॥७५॥ पम्हुट्टं या कत्थवि, वड्ढिपउत्तं च उज्झियं जइवि । नो तस्स नस्सइ धणं, धणियं बड्ढड़ अ किं बहुणा ॥७६॥ सच्चितं अच्चितं मीमं वा किंपि तं पिहू अपयं । दुपयं चउप्पयं वा, तहा जहा कहमऽवि ठियं पि ॥७७॥ |देसनगराऽऽगराणं, गामाण य दारुणोवघाए वि । न कहिं पि किंपि पलयं, पावेइ तप्परिग्गहियं ॥७८॥ अकिलेसघडंताणं, जहिच्छियाणं व होइ दव्वाणं । सामी भोई य तहा, तस्स अणत्था खयं जंति |भोज्जाऽऽगयहेरियहरिय-थेरिगिहसारललियगोट्ठी व । इह तड़यपावठाणग-निरया पाविंति बंधाऽऽई जे पुण तओ विरता, ते सुद्धसहावओ च्चिय न होंति । तम्मज्झयुत्थसावय - पुत्तो व्य कया वि दोसपयं ॥ ८१ ॥ तहाहि ॥७९॥ ॥८०॥ “श्रावकपुत्रवसुदत्तदृष्टान्तः” नयरम्मि वसंतपुरे, वसंतसेणाऽभिहाणथेरीए । जेमाविओ पुरजणो, एगम्मि महूसवे सव्यो | अह तत्थेव पुरम्मि, वत्थव्या अत्थि दुल्ललियगोट्ठी । तीए य थेरिगेहं हेरिता रयणिसमयम्मि लुंटेउं आरद्धं, नवरं सावयसुओ उ वसुदत्तो । तग्गोट्ठिमज्झवत्ती वि, नेव चोरिक्कयमऽकासी तो तं मोतुं थेरीए, चोरचरणा पणामववएसा । मा चोरह त्ति भणिरीए, अंकिया मोरपित्तेण मुसिऊण गेहसारं, निक्खंता ते तओ पभायम्मि । थेरीए नरवइणो, तव्युत्ततो लहुं कहिओ अह मोरपित्तलंछिय - पयपुरिसपलोयणं कुणंतेहिं । रायनिउत्तनरेहिं, दिट्ठा सा दुल्ललियगोट्ठी | सच्छंदपाणभोयणविहीए, सव्वाऽऽयरं विलसमाणी । संजायनिच्छएहिं, तो नीया नरवइसमीये अल्लंछियपयसावय- मेक्कं चेबुज्झिऊण ते सेसा । छिंदणमिंदणबहुजा - यणाहिं निहणं समुयणीया एवमऽदत्तादाण - प्यवित्तिविणिवित्तिमंतजंतूणं । ट्टणम सुहफल - मेत्तो विरमसु तुमं वच्छ! | इय तइयपावठाणग-मडदत्तगहणाऽभिहाणमुवइ । भूरिविसयं पि एत्तो, लेसेण चउत्थमऽक्खेमि “मैथुनस्वरूपम् ” mn ૮૫ ॥८४॥ ॥८५॥ ॥८६॥ મા ॥८८॥ ॥८९॥ ॥९०॥ ॥९१॥ ॥९५॥ ॥९७॥ ॥९८॥ ॥९९॥ | मेहुन्नं सुचिरकिलेस - पत्तवित्तस्स मूलविद्धंसो । दोसुप्पत्तीणमऽयंझं, कारणं ठाणमऽजसस्स गुणपयरिसकणनियरस्स, दारुणोदूहलो 2 हलग्गं च । सच्चमहीए महिया, विवेयरविकिरणपसरस्स एत्थ पडिबद्धचित्तो, सत्तो विवरम्मुहो भवे गुरुणो । पडिवक्खत्ते वट्टइ, भाउयभइणीसुयाणं पि | कुणइ अकज्जं कज्जं पि, चयइ लज्जइ विसिट्ठगोट्ठीए । झाएइ बज्झवावार - विरयचित्तो सया एवं अहह ! रमणीण रेहड़, अरुणाऽरुणनहमऊहविच्छुरियं । चलणजुयं कमलं पिव, नयदिणयरकिरणसंवलियं ॥९६॥ अणुपुव्ववट्टमणहर - मुरुमणिभिंगारनालरमणीयं । जंघाजुयलं वम्मह - करिकर करणिं समुव्यहड़ रमणफलयं पि पंच- प्पयाररुइरयणकंतिपडिबद्धं । गयणयलं पिव सोहइ, फुरंतसुररायधणुकलियं उयरम्मि मुट्ठिगेज्झे, मणोहरा वलिपरंपरा सहइ । थणगिरिसिहराऽऽरोहण - कएण सोवाणपंति व्व | अंतवियसंतनवकमल - कमलनालोवमं समुव्यहइ । कोमलनंसलकररेह - माणभुयवल्लरीजुयलं | आणंदबिंदुसंदिर-सुंदेरुद्दाममिंदुबिंबं व । कामिचओराण मणो, उल्लासइ वयणस्यवत्तं अलिकुलकज्जलकसिणो, सुसिणिद्धो सहइ केसपब्भारो । चित्तऽब्भन्तरपज्जलिय-मयणसिहिधूमनिवहो व्य mn एवं विलासिणीजण - सव्यंडगाऽवयवचिंतणाऽऽसत्तो । तदुवहयमाणसो इव, तदऽट्ठिसंघायघडिओ व्य तदऽहिट्ठिओ व्व सव्वऽप्प - णावि तप्परिणईपरिणओ व्व । जंपड़ अहो! जयम्मि, कुवलयदलसच्छहऽच्छीणं ॥४॥ जुवईण विजियहंसं, गइविलसियम हह ! मणहरा वाणी । अद्धऽच्छिपेच्छियाणं, अहहो! छेयत्तणमऽतुच्छं | अहह! दरदलियकइरव - सुहयं हसियं फुरंतदंतऽग्गं । उक्कंपिरथोरथण - स्थलं अहो कणगकंडुयणं रंगंतवलीवलयं, पायडियविसट्टनाभिकंदोट्टं । फुट्टंतकंचुयमऽहो !, पेहह मोट्टाइयमरट्टं एक्कक्कमवि इमेसिं, दुलहमिमाणं किमंडग समवाओ । अहवा किं वन्निज्जइ, तासिं संसारसाराणं चिंतणमऽवि सयमोल्लं, जासिं अवलोयणं सहसमुल्लं । गोट्ठी य कोडीमुल्ला, अमोल्लओ अंगसंभोगो ॥९॥ एवं च सो वराओ, तग्गयचिंताविलायचेट्ठाहिं । मत्तो व्व मुच्छिओ इव सव्वग्गहनिहयचेट्ठो व्य ॥५८००॥ ॥१॥ m ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ ॥१०॥ 1. हेरित्ता = निरीक्ष्य । 2. हलाग्रम् । 3. करणिं = सादृश्यम् 163 ॥९२॥ ॥९३॥ ॥९४॥

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