Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 232
________________ संवेगरंगशाला श्लोक नं. ७३६५-७३६१ विकथास्वरूपम् धी! जीविएण खत्तिणि-बंभणियेसीण बालविहयाणं । जीवन्तमयाए सब्व-ओ यि तह संकणिज्जाणं ॥६५॥ सुद्दीओ च्चिय मण्णे, धण्णाउ जयम्मि नवरमेक्काउ । नो जाण नवनवडन्नडन्न-पुरिसकरणे वि दोसोउत्थि ॥६६॥ कुलकहा - उग्गाऽऽइ-कुलुप्पन्नाण-मन्नतरगाण जा पुण पसंसा । निंदा या किर कीरइ, भणंति तं कुलकहं ति जहा ॥६७॥ चोलुक्कसुयाणं चिय, तहाविहं साहसं न अन्नाणं । निप्पेमा यि ह पविसंति, जाउ जलणं पइम्मि मए ॥६८॥ रुवकहा - जा पुण रूवपसंसा, अंधिप्पभिईण अन्नतरगाए । निंदा या तबिउणो, तं रूयकहं भणंति जहा ॥६९॥ लीलाललंतलोयमुहीसु, लायन्नसलिलजलहीसु । रइरमणो वि हु अंधीसु, चेव सव्यंगमडल्लीणो ૭૦થી अहयाधूलिपंगुरियतणू, जउमयमणिया वि नो गले बहुया । जट्टीए कारविया, उट्ठबइस्सं तहवि पहिया ॥७१॥ नेवत्थकहा - तासिं चिय अन्नयरीए, जाउ नेवत्थसंसणाऽऽइया । सा पुण नेयत्थकहेह, देसिया तविऊहिं जहा ॥७२॥ अत्तुच्छाउणच्छेणं, नवत्थेणं सुछाइयंडगीए । वियसंतनयणनीलु-प्पलाए सोहग्गवावीए ॥७३॥ नारीए उ दिव्याए, धिरउत्थु तारुण्णयस्स तरुणेहिं । लायन्नजलं नयणंड-जलीहिं नाऽऽपिज्जए जीए ॥७४॥ इच्चाइनेयत्थकहा । गया इत्थिकहा ॥ भत्तकहा यि चउद्धा, आवायकहा तहेव निव्याये । आरंभकहा तइया, निट्ठाणकहा चउत्थी उ ॥५॥ आवायकहा इह रसवतीए, एवइयगाउ सागाऽऽई । एत्तियमेत्ता य घयाउड-इणो रसा पुण पउत्ति ति ॥६॥ इच्चाऽऽइ आवायकहा ।। | निल्यावकहा भन्नड़, एत्तियमेत्ता उ यंजणपयारा । तह पक्कन्नविसेसा, एयइया तत्थ भोज्जे ति ॥७॥ इच्चाऽऽइ निव्वावकहा ।। अह आरंभकहा पुण, जलथलखहयरजियाण उवओगो । एत्तियमेत्ताण फुडं, संजायइ तत्थ भोज्जे ति ॥८॥ इच्वाऽऽइ आरंभकहा । निट्ठाणकहा एसा, सयं व पंच व सया सहस्सं या । किं बहुणा लक्खाऽऽइ यि, उतजुज्जइ तत्थ भोज्जे ति॥७९॥ इच्चाऽऽइ निट्ठाणकहा । भणिया भतकहा ॥ देसकहा वि चउद्धा, छंदकहा विहिकहा वियप्पकहा । नेवत्थकहा य तहा, तत्थ य देसो उ मगहाई ॥८०॥ छंदो गम्माडगम्म, जह किर लाडाण माउलगधूया । गम्मा गोल्लाऽऽईणं, भगिणि च्चिय सा अगम्मेव ॥८१॥ अहवा उ उइच्वाणं, माउसवत्ती जहा भवे गम्मा । अन्नेसिं नेय कहा, जणणि व्य इमा उ छंदकहा ॥८२॥ इच्वाऽऽइ छंदकहा । तप्पढमयाए जं जत्थ, भुज्जए सा भवे उ देसविही । तीए कहा पुण जा सा, देसविहिकहा मुणेयव्या ॥८३॥ अहवा विवाहभायण-भोयण मणिव्यए पसाहणाऽऽईणं । जा विरयणा विहीए, कहेह सा विहिकहा होई ॥८४॥ इच्वाऽऽइ विहिकहा । अह होइ विगप्पकहा, तत्थ विगप्पो हु सासनिप्फत्ती । तह वप्पकूवसारणि-नइरेल्लगसालिरोप्पाऽऽई ॥५॥ घरदेवउलविभागो, तहा निवेसो य गामनगराऽऽई । एमाऽऽईओ तस्स उ, कहा भवे इह वियप्पकहा ॥८६॥ नेवत्थं इह भन्नइ, इत्थीपुरिसाण संतिओ वेसो । सो य दुहा साहायिय-भूसापच्वइयभेएणं तस्संसा निंदा या, नेवत्थकहा भये मुणेयव्या । इइ चउहा देसकहा, रायकहा भन्नए अहुणा ૮૮ |सा वि चउद्धा भणिया, निजाणकहा तहेव अइयाणे । होइ बलवाहणकहा, तह कोट्ठाडगारकोसकहा ॥८९॥ गामनगराऽजगराओ, निग्गमणं नरवइस्स निजाणं । एएसुं चिय जं पवि-सणं तु तं बेंति अइजाणं ॥१०॥ निज्जाणं अइयाणं, पडुच्च जं यण्णणं णरेंदस्स । सा किर निज्जाणकहा, अइयाणकहा य होई तहा ॥११॥ 1. मणिच्चपसाहणाइंणं पाठां०। 207

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