Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 250
________________ संवेयरंगशाला श्लोक नं. ८००४-८०४० महिलानां दोषाः च. - गर्भावस्थास्वरूपम्। वाओलीउ व्ब रयाऽऽउलाउ, मइलिंति महिलियाउ नरं । संझाउ ब्च अवस्सं, भवंति खणमेत्तरागाओ ॥४॥ जावइयाई जलाई, वीईओ वालुगा व जलहीसु । नइसु य हवंति तत्तो, महिलाचित्ताई बहुयाइं ॥५॥ आगासभूमिजलनिहि-सुरगिरिपवणाऽऽइणो वि पुरिसेहिं । नाउं सक्का न पुणो, कहमऽवि इत्थीण चित्ताई ॥६॥ चिटुंति जहा न चिरं, विज्जू जलबुब्बुया व उक्का या । तह न चिरं महिलाणं, एक्कम्मि नरे रमइ चित्तं ॥७॥ परमाणू वि कहंचि वि, आगच्छेज्ज गहणं मणूसस्स । न य सक्का घेत्तुं जे, चित्तं महिलाण अइसुहुमं ॥८॥ कुविओ वि कन्हसप्पो, दुट्ठो सीहो वि मतहत्थी यि । घेप्पड़ कह वि नरेणं, न य चित्तं दुट्ठमहिलाए ॥९॥ उदगम्मि वि तरइ सिला, सिही वि न दहेइ होइ हिमसिसिरो । न उण महिलाण कइय वि, उज्जुभावो भवइ पुरिसे॥१०॥ उज्जुगभावम्मि असंतयम्मि, कह होइ तासु वीसंभो । वीसंभे य असंते, का होज्ज रई महिलियासु ॥११॥ गच्छेज्ज समुद्दस्स वि, पारं पुरिसो भुयाहिं तरिऊण । मायाजलमहिलोयहि-पारं न य सक्कए गंतुं ॥१२॥ रयणसहिया सवग्धा, गुहा व सीयलजला सगाहा य । सरिय ब्व जणमणहरा (विहु), उब्बियणिज्जा य ही! महिला॥१३॥ दिलृ पि न सम्भावं, पडियज्जड़ नियडिमेव उड्डेइ । गोहानिलुक्कमित्थी, करेड़ पुरिसम्मि कुलजा वि ॥१४॥ तारिसओ णत्थि अरी, नरस्स अन्नो ति बुच्चए नारी । पुरिसं सया पमत्तं, कुणइ ति य वुच्चए पमया॥१५॥ |पुरिसम्मि अणत्थसए, विलायइ जेण तेण विलया सा । जोजेइ नरं दुक्खे य, तेण जुवई य जोसा य॥१६॥ अबल ति होइ जं से, न दढं हिययम्मि धिइबलं अस्थि । इय महिलानामाणि वि, चिंतिताणि असुहाणि ॥१७॥ निलओ कलीए अलियाण, आलओ कुलहरं अविणयाणं । आयासस्स य वसही, महिला मूलं तु कलहस्स ॥१८॥ धम्मस्स परमविग्यो, पाउब्भायो य धुवमऽधम्मस्स । संदेहो देहस्स वि, हेऊ माणाऽवमाणाणं ॥१९॥ बीयं पराभवाणं, महिलाओ कारणं अकितीए । अत्थाणं सव्वगमो, समागमो तह अणत्थाणं ॥२०॥ दोग्गइमग्गो सग्गाऽप-वग्गमग्गे य अग्गला उग्गा । दोसाण नियाऽऽवासो, सव्व-गुणाणं पयासो य ॥२१॥ चंदो वि होज्ज उण्हो, सीओ सूरो वि निबिडमाऽऽयासं । न य होज्ज अदोसा भ-दिया य महिला सुकुलजा वि॥२२॥ इच्चाई बहुदोसे, महिलाविसए विचिंतयंतस्स । पायं विरज्जड़ मणो, महिलाहिंतो विवेइस्स ॥२३॥ जह जाणिऊण दोसे, वग्घाऽऽई एत्थ परिहरिजंति । तह ठूणं दोसे, महिलाहिंतो वि विरमेज्ज ॥२४॥ | किं बहुणा भणिएणं, दोसा महिलाकया इहं चेव । हेट्ठाडणुसट्ठिदारे, गणवइणा देसिया चेव ॥२५॥ सद्धकारणकयं, कारणसद्धीए सज्झइ तयं त । कतो अमेज्झघडियस्स, होज्ज सुद्धी सरीरस्स . ॥२६॥ देहस्स सुक्कसोणिय-मऽसुई उप्पत्तिकारणं जम्हा । ता देहो च्चिय असुई, अमेज्झघडिओ जहा घडओ ॥२७॥ तहाहि "गर्भावस्थास्वरूपम्" अम्मापिउसंजोगे, सोणियसुक्काण मीलणे कलुसं । जं होइ तत्थ जीयो, उप्पज्जइ पढममेव तओ ॥२८॥ तं कलुसं सत्ताहं, कललं होऊण अब्बुयं होइ । सत्ताहं चिय तत्तो, घणरुवं पढममासम्मि ॥२९॥ करिसूणं पलमेतं, जायइ बीयम्मि तं च मासम्मि । घणरुवमंसपेसी, संपज्जड़ तइयमासे य રે जणणीए जणइ डोहल-मंगाणि य पीणइ चउत्थम्मि । निव्वत्तइ पंचमगे, सिरकचरणंडकुरमऽवत्तं .. ॥३१॥ उवचिणइ छट्ठमासे, सोणियपित्ताई सत्तमम्मि पुणो । सत्तसयाइं सिराणं, पंच सयाई च पेसीणं. ॥३२॥ धमणीओ नव सव्वंडग-भाविअधुट्ठरोमकोडीओ । निव्वत्तइ अट्ठमए, वित्तीकप्पो भवइ पच्छा ॥३३॥ नवमे वा दसमे वा, जणणिं अप्पाणयं च पीडंतो । नीसरइ जोणिकुहराओ, विरससदं रसेमाणो. રૂના अणुपुबीए वुड्ढीगए य, देहम्मि मुत्तरुहिराणं । पत्तेयमाऽऽढयं कुल-वओ य तह सिंभपित्ताणं ॥३५॥ सुक्कस्स अद्धकुलयो, हवेइ पत्थो य मत्थुलिंगस्स । अद्धाऽऽढओ वसाए, एक्को पत्थो पुरीसस्स ॥३६॥ अट्ठीणं तिन्नि सया, भरिया बीभच्छकुणिममज्जाए । संधीणं सव्यग्गं, सट्ठीअहियं सयं होड़ नव हारूण सया, सिरासयाई च होंति सत्तेव । होति य पंच सयाई, देहम्मि मंसपेसीणं ॥३८॥ इय सुक्कसोणियप्पमह-कलुसपोग्गलचएण निम्माओ । नवमाससमाओ असुई-रसपाणुवलद्धपरिवुड्ढी ॥३९॥ जोणिमुहनीहरिओ यि, जणणीथणछीरपीणिओ बाढं । पगइअमेज्झमइओ, सुइत्तमाऽऽवहइ कहं देहो ॥४०॥ 225

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