Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 244
________________ संवेगरंगशाला श्लोक नं. ७७८७-७८२३ सम्यग्ज्ञानोपयोगनामक नवम्द्वारम् ॥८७॥ ॥८८॥ ॥८९॥ सूलाए निम्भिन्नं, नियदेहं सावयं च तह दटुं । रुट्ठो सो नयरोवरि, पव्वयमुप्पाडिउं भणड़ रे! रे! देवयभूयं, सावयमेयं खमाविडं मुयह । इहरा इमेण गिरिणा तुब्भे सव्वे वि चूरिस्सं अह भीएणं रन्ना, जिणदत्तो खामिऊण पम्मुक्को । इय हु डियचोरस्स व परलोगसुहो नमुक्कारो एवं च उभयलोगे वि, सोक्खमूलं इमं मुणेऊणं । आराहणाऽभिलासी, खवग! तुमं सइ सरेज्ज जओ ॥९०॥ “पंचण्ह णमोक्कारो, जीवं मोएड़ भवसहस्साओ । भावेण कीरमाणो, होड़ पुणो बोहिलाभाय पंचण्ह णमोक्कारो, धन्नाण भवक्खयं करेन्ताणं । हिययं अणुम्मुयंतो, विसोत्तियावारओ होड़ पंचण्ह नमोक्कारो, एवं खलु यन्निओ महत्यो त्ति । जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ॥९३॥ पंचण्ह नमोक्कारो, सव्यपायप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं भवइ मंगलं " ॥९१॥ ॥९२॥ ॥९४॥ इय ताव भणियमेयं, पंचनमोक्कारनामपडिदारं । सम्मन्नाणुवओगाऽभि - हाणमऽक्खेमि अह नवमं ॥९५॥ “सम्यग्ज्ञानोपयोगद्वारम् ” ॥९६॥ ॥९७॥ ॥९९॥ खमग! पमायं उम्मूलिऊण, नाणोवओगवं होसु । जम्हा सव्वाऽऽबाहा - विवज्जियं जीवलोगस्स नाणं चक्खू नाणं, पईवओ नाणमेव दिणणाहो । तिहुयणतिमिसगुहाए, पगासरयणं परं नाणं जड़ ताव नाणचक्खू, न होज्ज जीवाण जीवलोगम्मि । ता मोक्खमग्गविसया, सम्मपवित्ती न जाएज्जा ॥९८॥ कह वा कुबोहसलहा - वहारिनाणप्पईवविरहेण । होज्जा जयं वरायं, मिच्छत्ततमोभरऽक्कतं तह फुरइ फुडं हयतम - सन्नाणदिवायरप्पभावेण । संसारसरे सुंदर - विवेयकमलाऽऽयरवियासो तिहुयणतिमिसगुहाए, अन्नाणतमंऽधयारघोराए । जड़ नो हुतो सन्नाण - कागणीरयणवावारो ता कह इमं वरायं मूढं जिणचक्किमग्गमऽणुलग्गं । अप्पडिहयप्पयारं इह 'नीहंतं भवियसेण्णं सक्का सुएण गाउं, उड्ढं च अहं च तिरियलोगं च । ससुराऽसुरं समणुयं, सगरुलभुयगं सगंधव्यं बंधं मोक्खं गइमाऽऽगई च, जीवाण जीवलोगम्मि । जाणंति सुयसमिद्धा, जिणसासणभावियमईया सूई जहा ससुत्ता, न नासइ कयवरम्मि पडिया वि । जीयो वि तह ससुत्तो, न नासड़ गओ वि संसारे सूई जहा असुत्ता, नासह पडिया क्यारमज्झम्मि । पुरिसो वि तह असुत्तो, नासइ संसारगहणम्मि जह आगमेण येज्जो, जाणड़ वाहिं चिगिच्छिउं निउणो । तह आगमेण नाणी, जाणड़ सोहिं चरितस्स जह आगमपरिहीणो, वेज्जो, वाहिस्स न मुणड़ तिगिच्छं । तह आगमपरिहीणो, चरितसोहिं न याणाइ ॥८॥ तम्हा पुव्यं पुव्यरिसि - परुवियम्मि अप्पमत्तेहिं । उज्जोओ कायच्यो, नरेहिं मोक्खाऽभिखीहिं ॥९॥ मेहा होज्ज न होज्ज व जं सा कम्मक्खओवसमसज्झा । उज्जोओ कायव्यो, नाणं अभिकंखमाणेहिं ॥१०॥ जड़ वि य दिवसेण पयं, पढेइ पक्खेण वा सिलोगद्धं । नाणं सिक्खेउमणो, तह वि हु मा मुंच उज्जोगं ॥११॥ पेच्छह ता अच्छेरं, अणऽच्छमाणीए अच्छमाणस्स । पासाणस्स बलवओ, खओ कओ वारिधाराए तह सीयएण मउयएण, जोगं अमुंचमाणेण । उदएण गिरी भिन्नो, थेवं थेवं वहतेण ॥७॥ ॥१२॥ ॥१३॥ ॥१५॥ ॥१६॥ 2 अपरिजिएण मणूसो, बहूणा वि सुएण अपरिसुद्धेण । खलिएण संकिएण य, जाणुयजणहासओ होड़ ॥ १४॥ थेवेण वि अखलियसुद्धएण, थिरपरिचिएण गहियत्थो । सज्झाएण मणूसो, अलज्जियाऽणाउलो होइ गंगाए वालुयं जो मिणेज्ज, उस्सिंचिऊण य समत्थो । हत्थउडेहिं समुद्धं, सो नाणगुणे अणुमिणेज्जा | पायाउ विणिवित्ती, तहा पवित्तीय कुसलधम्मस्स । विणयस्स य पडिवत्ती, तिन्नि वि नाणस्स कज्जाई ॥१७॥ संजमजोगे आराहणा य, आणा य यद्धमाणस्स । सक्का नाउं नाणेण, तेण नाणं अहिज्जेज्जा नाणे आउत्ताणं, नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं । को निज्जरं तुलेज्जा, पयडियसिवपउणपयवीणं छट्ठऽट्ठमदसमदुवालसेहिं, अबहुस्सुयस्स जा सोही । तत्तो बहुतरगुणिया, हवेज्ज जिमियस्स नाणिस्स ॥२०॥ एक्काऽहेण तयस्सी, भवेज्ज नडत्थेत्थ संसओ को वि । एक्काऽहेण सुयधरो, न होइ धंतं पि तुरंतो ॥२१॥ जं नेरइओ कम्मं, खवेड़ बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ ऊसासमेत्तेणं नाणेण सव्यभावा, नज्जंति चराऽचरा तिहुयणत्था । तम्हा नाणं कुसलेण, सिक्खियवं पयत्तेणं ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२२॥ ॥२३॥ 1. नीहंतं = निरसरिष्यत् B | 2. अपरिचितेन । 219 ॥७८०० ॥ ॥१॥ nu m ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥

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