Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 202
________________ संवेगरंगशाला श्लोक नं. ६२७३-६३०६ क्षुल्लककुमारमुनिदृष्टान्तः जह य असंपत्तीए, पत्थुयवत्थुस्स होइ जा अरई । स च्चिय रइत्तणेणं, तस्संपत्तीए परिणमइ ॥७३॥ तह जा संपत्तीए, पत्थुयवत्थुस्स होइ एत्थ रती । अरइत्तणेण स च्चिय, तस्स विवत्तीए परिणमइ ॥७४॥ अहया बज्झनिमित्तं, विणा वि किर अरतिमोहम्मदया। देहे च्चिय जा जायड, अणागयाडणिसयणिया सा अरई तव्वसओ, अलसो विहलंघलो विगयसन्नो । इहपरलोयपओयण-पसाहणेसुं पमायंतो ॥६॥ उच्छाहिओ वि उच्छहइ, नेय किच्चम्मि कम्मि वि कयाइ । छगलगलत्थणसरिसं स, तारिसो जियइ जियलोए॥७७॥ तह रइपसत्तचित्तो, कहिं वि तत्तो नियत्तिउमडसत्तो । चिखल्लखुत्तजरगोण-उ व्य रतिमोहकम्मवसा ॥८॥ ज्जमिहलोइयं पि हु, न कुणइ पारत्तियं पुण- कहं व । अच्वंतपयत्तपउत्त-चित्तनिव्वत्तणिज्जं जं ॥७९॥ एवं अरइरईऊ, भवभावनिबंधणं वियाणित्ता । मा तासिं अवगासं, खणं पि दाहिसि तुम अहया ॥८॥ अरई पि कुणसु अस्सं-जमम्मि संजमगुणेसु य रई पि । एवं च पकुव्वंतो, लहिहिसि आराहणं पि धुवं ॥८१॥ किं बहुणा भणिएणं, अरइरइं भवनिबंधणं धुणिउं । काउमऽधम्मे अरइं, धम्माऽऽरामे रतिं कुणसु ॥२॥ ऽणिविसएस जड़ तुज्झ । धीर! न रई न अरई, ता तममाऽऽराहणं लहसि ॥८३॥ धम्माऽहम्मे अरई-रईओ, पुरिसं रंति जणसोच्वं । खुड्डगकुमारमुणिमिव, संजमभरधरणपरितंतं ૮૪ના सम्मं असंजमे संज-मे य अरईरईहिं पुण होज्जा । सो च्चिय पच्चागयचेय-णो जह तह जणे पुज्जो ॥८५॥ तहाहि "क्षुल्लककुमारमुनिदृष्टान्तः" साकेयम्मि पुरवरे, पुंडरीओ नाम भूवई तस्स । कंडरीओ लहुभाया, जसभद्दा नाम से भज्जा ૮દ્દા अच्वं तमणहरंडगी, चंकम्मती घरंगणे सा य । दिट्ठा पुंडरीएणं, अज्झुववन्नेण अह तेणं ૮૭ दुई विसज्जिया लज्जि-रीए तीए य सा पडिनिसिद्धा । अच्वंतं निब्बंधे य, राइणो तीए पडिभणियं ॥८॥ | किं न लहुभाइणो वि हु, तं लज्जसि जेण उल्लवसि एवं । पच्छन्नो कंडरीओ, तयणु विणासाविओ रन्ना ॥८९॥ अभत्थिया पुणो वि हु, ताहे सा सीलखंडणभएण । नियगाऽऽभरणाणि लहं, गहाय गेहाओ नीहरिया ॥१०॥ सत्येण समं एगागिणी वि, पडिवन्नजणगभावस्स । थेरवणियस्स निस्साए, नयरिं सावत्थिमडणुपत्ता ॥११॥ जियसेणसूरिसिस्सिणि-कित्तिमईमयहरीसमीचे य । वंदणवडियाए गया, कहिओ सब्यो य वुत्तंतो . ॥९२॥ संबुद्धा पव्वइया, हुंतो वि न साहिओ तीए गब्भो । मयहरियाए मझं, मा पव्वज्जं न दाहि ति ॥१३॥ | कालक्कमेण बुड्ढेि, गयम्मि गब्मम्मि मयहरीए सा । पुट्ठा एगंतम्मि कारणमऽवि तीए परिकहियं ॥१४॥ पच्छा पच्छन्न च्चिय, ता धरिया जा सुयं पसूया सा । सड्ढकुलम्मि संवड्ढि-ओ य सो जाय पव्वइओ ॥१५॥ सूरिस्स समीवम्मि, कयं च से नाम सुड्डगकुमारो । सिक्वविओ य समग्गं, जईण जोग्गं समायारं ॥१६॥ | अह जोव्वणमडणुपत्तो, संजममऽणुपालिउं अचाइंतो । पडिभग्गो जणणिं सो, पुच्छइ उन्निक्खमणहेउं ॥९॥ | पडिसिद्धो जणणीए, बहप्पयारेहिं तहवि नो ठाइ । पच्छा तीए भणिओ, पत्तय! मज्झोवरोहेण ९८॥ पडिवालसु बारस यच्छराई, एवं ति तेण पडिवण्णं । तेसु य अइक्कंतेसु, पट्ठिओ तीए पुण भणिओ ॥१९॥ मह गुरुणिं आपुच्छसु, आपुट्ठाए य तीए वि य धरिओ । तेत्तियमेतं कालं, आयरिएणाऽवि एमेव ॥६३००॥ | एवं उज्झाएण वि, अडयालीसं गयाणि परिसाणि । तह वि हु अठायमाणो, उवेहिओ णवरि जणणीए ॥१॥ | पिउनामंडका मुद्दा, कंबलरयणं च पुवसंठवियं । तस्सऽप्पिऊण सिटुं, मा पुतय! तत्थ तत्थेव वच्चिहिसि किंतु पुंडरीय-भूवइ होइ ते महल्लपिया । पिउणामंडकं मुदं, दरिसेज्जासि य तस्स इमं ॥३॥ जेणं स तुज्झ रज्जं, परियाणित्ता पणामइ अवस्सं । एवं ति पवज्जित्ता, विणिग्गओ खुड्डगकुमारो ॥४॥ | कालक्कमेण पत्तो, साकेयपुरम्मि राइणो गेहे । तव्येलं पुण वट्टइ, पेच्छणयं अच्छरियभूयं ॥५॥ कल्ले पेच्छिस्सं भू-वई ति संचिंतिऊण तत्थेव । आसीणो नट्टविहिं, एगग्गो दटठमाउडरद्ध દા तत्थ य सव्वंपि निसं, पणच्चिङ नट्टिया परिस्संता । ईसिं निहायंती, जणणीए पभायसमयम्मि ॥७॥ विविहकरणप्पओगाड-भिरामसंजायरंगभंगभया । गीईगाणमिसेणं, सहस च्चिय बोहिया एवं તળા "सुट्ठ गाइयं सुठु वाइयं, सुट्ठ नच्चियं सामसुंदरि! । अणुपालिय दीहराइयाउ, सुमिणंडते मा पमायए' ॥९॥ 1. आपुच्छिया पाठा० । 2. विजंतो वि हु न साहिओ गम्भो पाठा० । ॥२॥ 177

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