Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group
View full book text
________________
संवेगरंगशाला श्लोक नं. ४४५५-४४८८
प्रवर्त्तिन्यैः अनुशास्तिः - साध्वीवर्गानुशास्तिः
॥५५॥
॥५६॥
॥५७॥
॥५८॥
॥५९॥
ता सीलरक्खगाणं, पुरिसाणं निंदियाउ महिलाउ । सीलं रक्खंताणं, महिलाणं निंदिया पुरिसा किं पुण गुणकलियाओ, महिलाओ दूरवित्थयजसाओ । तित्थयरचक्किहलहर - गणहरसप्पुरिसजणणीओ सीलवईओ सुव्वंति, महीयले पत्तपाडिहेराओ । नरलोयदेवयाओ, चरमसरीराओ पुज्जाओ ओहेण न बूढाओ, जलंतघोरऽग्गिणा न दड्ढाओ । सीहेहिं सावएहिं य, परिहरियाओ अपावाओ ता सव्यहा न एयं वोत्तुं जुत्तं जहा महिलियाओ । अविसेसेणं होंति, नियमेणं सीलवियलाओ किंतु भये मोहवसा, जीवो सव्यो वि चेव दुस्सीलो । नवरं सो महिलाणं, पाएण जमुक्कडो होइ तेणेयं पन्नवणं, पडुच्च युच्वंति थीकया दोसा । ते य परिचिंतयंतो, विसएसु विरज्जए पुरिसो ते सुकयसालिणो च्चिय, नियंविणीणं वसंति जे हियए । ताओ न जाण ते पुण, होंति सुराणं पि नमणिज्जा ॥ ६२ ॥ इय भाविऊण भावेण सव्वहा अत्तणो हियप्रत्थीहिं । एत्थइत्थे अच्चत्थं, अपमत्तेहिं भवेयव्यं एमाऽऽइणा कमेणं, सीसे अणुसासिऊण मुणिवसभो । संपइ पवत्तिणि पि हु, अणुसासड़ समयनीईए ॥ ६४ ॥ “प्रवर्त्तिन्यैः अनुशास्तिः”
॥६०॥
॥६९॥
કો
जड़ वि तुमं कुसल च्चिय, सव्वत्थ वि तहवि अम्ह अहिगारो । सिक्खादाणे तेणं, देवाऽणुपिए! पियं भणिमो ॥ ६५॥ संपत्ता इय पयविं, समत्थगुणसाहणम्मि गरुययरीं । ता तीए उत्तरोत्तर - वुड्ढिकए कीरउ पयत्तो अविय
Fl
“साध्वीवर्गानुशास्तिः”
॥६७॥
सुत्तऽत्थोभयरूवे, नाणे 'नाणुतकिच्चयग्गेसु । सतिं अइक्कमित्ता वि, उज्जमो किर तुमे किच्चो | पावाओ वि पवित्ती, सुभम्मि परिणामसुंदरा पायं । किं पुण संवेगाओ, ता संवेगे य जइयव्यं सुचिरं पि तवी तवियं, चिन्नं चरणं सुयं च बहु पढियं । संवेगरसेण विणा, विहलं जं ता तदुवएसो ॥६९॥ तहाहि
॥६८॥
॥७१॥
॥७२॥ ॥७३॥
॥७४॥
सन्नाणाऽऽइगुणेसु, पवत्तणेणं इमाण समणीणं । सच्चं पवत्तिणि च्चिय, जह होसि तहा जएज्ज तुमं ॥७०॥ | सोहग्गनट्टरूवाऽऽइ - विविहविन्नाणरागरत्ताओ । लीयंति लोयदिट्ठीओ, रंगगयनट्टियाए जहा | सन्नाणपमुहबहुविह- सद्धम्मगुणाऽणुरागरताओ । नाणादेससमुब्भव -विसालकुलसंपसूयाओ देवाऽणुपिए! पिइमाइणो वि, मोत्तूण तह इमाओ वि । पावियपवत्तिणिपय- रम्माए तुह समल्लीणा तम्हा जह स च्चिय नच्चणीह, संजससदिट्ठिदाणेण । भणियगुणपयडणेण य, पेच्छगदिट्ठीओ पीणेड़ संजसदिट्ठिपसाएण, धम्मगुणदाणओ य तह निच्चं । सम्मं तुमं पि पीणेज्ज, अज्जियाओ धुवमिमाओ ॥७५॥ निययगुणेहिं महग्घं, सियवियासं ससिकलं जह कलाओ । कमसो समल्लियंति, पयइहिमहारथवलाओ ॥७६॥ तह तुह वि तहाविहनिय - गुणेहिं अग्घाऽरिहाए लोगम्मि । एयाउ समल्लीणा पयइसुधयलुज्जलगुणाओ ॥७७॥ जह ताहिं तीए वुड्ढी, मूलाऽऽधारो उ ताण सा जह य । न घडड़ ठिइ वि जह वा, तयं विणा ताण थेवं पि ॥ ७८ ॥ तह तुह इमाहिं बुड्ढी, मूलाऽऽधारो तुमं पुण इमाण । सज्जणसलाहणिज्जा, ठिई वि न विणा तुममिमासिं ॥७९॥
तहा
॥८२॥
॥८३॥
॥८४॥
सा चेव चंदलेहा, कलाहिं रहिया विरायए न तहा । जह तह ताओ वि न तं विणा तहा जह विरायंति ॥८०॥ एवं तुमं पि एत्थं, इमाहि रहिया विरायसे न तहा । एयाओ वि य न तहा, राइस्संति विणा तुमए ॥ ८१ ॥ तम्हा निव्वाणपसाहगाण, जोगाण साहणविहीए । सम्मं सहाइणीए, होयव्यं सइ इमाण तए तह वज्जसिंखला इव, मंजूसा इव सुनिबिडवाडी व । पायारो व्य हवेज्जसु तुममऽज्जाणं पयत्तेण अन्नं च विद्दुमलया, मुत्तासुत्तीउ रयणरासीउ । अइमणहराउ धारइ, न केवलाओ जलहिवेला किंतु जलसिप्पिणीउ, भेरीओ वराडियाऽऽइयाओ वि । जलजोणित्तसमत्ता, असुंदराओ वि धारेइ एवं राईसरसेट्ठि - पमुहपुत्तीओ पउरसयणाओ । बहुपढियपंडियाओ, सवग्गसयणीओ जाओ य मा ताओ चेव तुमं, धारेज्जसु किंतु तदियराओ वि । संजमभरवहणगुणेण, जेण सव्वाउ तुल्लाओ अवि नाम जलहिवेला, ताओ धरिडं कयाइ उज्झइ वि । निच्चं पि तुमं तु धरेज्ज, चेव एयाओ धन्नाओ ॥८८॥ 1. नाणुत्त = ज्ञानोक्त । 2. जलयोनित्वसमत्वात् । 3. स्ववर्गश्रयिण्यः ।
॥८५॥
॥૬॥
॥८७॥
126

Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308