Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 185
________________ प्राणिवधेधश्रृस्नुषयाः दृष्टान्तः - अलीकवचनस्वरूपं संवेगरंगशाला श्लोक नं. ५६६३-५६६६ | तदुव्विलसियअवलो- यणट्टया बाढमऽप्पमत्तमणो । निहुओ मोणेण ठिओ, एगंते अह खणस्संडते आगंतुं थावरओ, वीसत्थो जाव पहरए तत्थ । ता मुणिचंदेण हओ, असिणा पत्तो य पंचतं वित्तंतस्स य एयस्स, गोवणटुं समग्गगोवग्गं । वाडाओ नीणित्ता, वाहरिउमिमो समाढतो E ॥६४॥ ॥६५॥ સદ્દકો ॥६८॥ ॥६९॥ हंहो ! धावह धावह, गावीओ तक्करेहिं हरियाओ । वहिओ य थायरो तो, सव्वत्तो धाविया पुरिसा गावीओ वालियाओ, नट्ठा चोर त्ति चिंतियं तेहिं । मयकिच्चं णिव्यत्तिय - मऽसेसमऽवि थावरस्स तओ ॥६७॥ किं होहि त्ति सचिंता, जा तम्मग्गं पलोयए जणणी । ता एगागी गेहे, मुणिचंदो झति संपत्तो | दिन्नाऽऽसणो निसण्णो, खग्गं गिहकीलगे विमोत्तूण । पयसोहणं च काउं, पारद्धं तस्स भज्जाए पुट्ठो य ससोगाए, जणणीए वच्छ ! थावरो कत्थ । तेणं वृत्तं अम्मो, मंदगई पिट्ठओ एइ तो संबुद्धा एसा, असिहुत्तं जा पलोयए ताव । पेच्छइ पिपीलियाओ, इंतीओ रुहिरगंधेणं सम्मं पेहंतीए, दिट्ठो खग्गो वि लोहियविलितो । ता पबलकोहहुयवह- पलित्तगत्ताए पावाए | आयड्ढिऊण तमऽदिस्स - माणदेहाए झत्ति पुत्तस्स । सीसं छिन्नं तीए, कहं पि यक्खित्तचित्तस्स तो सामिमारणुप्पन्न -तिव्यकोवाए तस्स भज्जाए । मुसलेण मारिया सा, बंधुमईए नियंतीए सा पुण पाणिवहाओ, विरतचित्ता महंतसंतायं । हिययम्मि उव्वहंती, ठिया घरस्सेगदेसम्मि मिलिओ य नयरलोगो, वित्तंतं मुणिय तं च सा भणिया । कीस तए नो हणिया, मायाए विणासिगा एसा ॥७६॥ | पाणिवहविरइरूवो - ऽभिप्पाओ साहिओ य सो तीए । तो सलहिया जणेणं, धिसिक्कियाइं च सेसाई ॥७७॥ गिहसारं नरवड़णा, गहियं सुन्हा य चारगे धरिया । इयरी य पूइया इय, पाणिवहो ऽणत्थहेउ ति पाणवहनामगमिमं पायद्वाणं निदंसियं पढमं । एत्तो उ अलियययणाऽ - भिहाणगं बीयमऽक्खेमि ॥७५॥ ॥७८॥ ॥७९॥ “अलीकवचनस्वरूपम्” अलियं हि रुद्दकंदो, बाढमऽविस्सासदुमसमूहस्स । बज्जाऽसणीनिवाओ, जणपच्चयसेलसिहरस्स गरिहापणतरुणीए, गहणगदाणं सुवासणासिहिणो । जलपक्खेवो संकेय-मंदिरं अजसकुलडाए | उभयभवभावि आवय - कुमुयपबंधस्स सारयमयंको । सुविसुद्धधम्मगुणसस्स - संपयाए कुवाओ य | पुव्वाऽचरवयणविरोह-रूवपडिबिंबस्स आयरिसो । सत्थाहमत्थयमणी, नीसेसाऽणत्थसत्यस्स | सप्पुरिसत्तणकाणण- निद्दहणम्मि य सुतिव्यहव्यवहो । ता एयप्परिहारो, कायव्यो सव्यजत्तेण किंच ॥७०॥ ॥७१॥ ॥७२॥ ॥७३॥ ॥७४॥ ॥८०॥ ॥८१॥ ॥८२॥ ૫૫ ॥८४॥ ॥८९॥ men ॥९१॥ | जह परमऽन्नस्स विसं, विणासयं जह य जोव्यणस्स जरा । तह जाण असच्चं पि हु, विणासयं सव्यधम्मस्स ॥८५॥ होउ य जडी सिहंडी, मुंडी वा वक्कली व नग्गो वा । लोए असच्चवाई, भन्नड़ पासंडिचंडालो ॥૬॥ अलियं सई पि भणियं, विहणइ बहुयाइं सच्चवयणाई । एवं च सच्चवयणे वि, तम्मि अप्पच्चओ चेव ॥८७॥ अलियं न भासियव्यं, गरहिज्जइ जं जणे अलियवाई । अप्पच्चयं च अप्पा - णयम्मि संजणइ जणमज्झे ॥ ८८ ॥ कारावेइ य अलिय- प्पयंपणे धिट्ठचेट्ठियं दयुं । जीहाछेदाऽऽईयं, चंडं दंडं नरवई वि इहलोगम्मि अकित्ती, सव्यजहन्ना गई य परलोए । अलियपयंपणपभवेण, होड़ पायेण जीवस्स नो कोहमाणमाया -लोभेहिंतो न हासओ न भया । भासेज्ज अलियवयणं, परलोयाराहणेक्कमणो ईसाकसायकलिओ, अलियगिराहिं परं उवहणंतो । मुणइ वराओ नेवं, जह अप्पाणं चिय हणेमि उक्कोडागहणरओत्ति, कुडसक्खिति अलियवाइति । धिक्कारमोग्गरहओ, णिवडइ नरए महाघोरे नो कित्ती नो अत्यो, नयाऽवि मणनेव्युई न धम्मो ति । उक्कोडागहणरयस्स, किंतु कुगईगमो चेय सीलं कुलमडप्पाणं, लज्जं मज्जायमऽह जसो जाई । नायं सत्यं धम्मं च, कूडसक्खी परिच्चयइ | वियलिंदिया जडा मूअ-ल्ला य हीणस्सरा य पूड़मुहा । मुहरोगिणो गरहिया, जायंति असच्चयाइत्ता | सग्गापवग्गमग्गऽग्गलं व, कुगतीए पुण पहो पउणो । अलियप्पयंपणं अप्प - णो य माहप्पलुंपणयं लोए वि मुसावाओ, समत्थसाहुजणगरहिओ गाढं । भूयाणमऽविस्सासो, तम्हा भासेज्ज मा मोसं लोए वि जो ससूगो, अलियं सहसा न भासए किंपि । जइदिक्खियो वि अलियं, भासइ ता किं च दिखाए ॥९९॥ ॥९२॥ ॥९३॥ ॥९४॥ ॥९५॥ ॥९६॥ ॥९७॥ un 160

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