Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ संवेगरंगशाला श्लोक नं. ५०५०-५०८८ आलोचनाविधानद्वारम् ॥५४॥ ॥५५॥ ॥५६॥ ॥५७॥ ॥५८॥ ॥५९॥ કો ॥६४॥ एवं खु दंसणम्मि वि, संकाऽऽईण कहं पि करणेण । उववूहणाऽऽइयाण य, पमायदोसा अकरणेण ॥५०॥ तह पवयणप्पभावग - पुरिसविसेसाण जणपसिन्द्राणं । पावयणियपमुहाणं, उचियपवित्तीअकरणेण ॥५१॥ सम्मत्तनिमित्ताणं, तहेव जिणभवणबिम्बमाऽऽईन । जिणसिद्धसुरिवायगा -समणाण तयस्सिणीणं च ॥५२॥ सावयसुसाविगाण य, अच्चाऽऽसायणअवन्नमाऽऽईहिं । जो विहिओ अइयारो, सो वि हु आलोयणाविसयो ॥ ५३ ॥ चरणम्मि वि मूलुत्तर - गुणरूये समिइगुत्तिरूवे य । जो अइयारो सो वि हु, आलोएंयव्यओ तत्थ छज्जीयनिकायाणं, घट्टणपरितावणाए उद्दवणे । पाणाऽइवायविरमण - विसयो संभवड़ अइयारो एवं बीयवयम्मि वि, कोहेणं माणमार्यलोभेहिं । हासेण भएणं वा, तहाविहाऽसच्चययणम्मि पहुणा जमऽदिन्नाणं, सच्चित्ताऽचित्तमीसदव्याणं । हरणं तं तइयव्यय - गोयरमऽइयारमऽवगच्छ सुरतिरियनरित्थीणं, पत्थण अहिलसणसेवणाऽऽईहिं । तुरियवए अंडयारं, आलोएयव्ययं जाण देसकुलगिहत्थेसुं, अइरितुवहिम्नि जो अईयारो । चरिमवए अइयौरो, सो वि हु आलोयणाजोग्गो दियगहियाऽऽइचउहा, निसिभत्तवयम्मि जो अईयारो । सुगुरुसमीवे सो वि हु, सम्मं आलोयणाअरिहो ॥६०॥ उत्तरगुणे य पिंडग्गहम्मि, अहवा वि भिक्खुपडिमासु । भावणबारसगम्मि, दव्वाऽऽइअभिग्गहेसुं च ॥६९॥ | पडिलेहणापमज्जण - पत्तुब्बहिनिसीयणाऽऽइविसयम्मि । जो अइयारो विहिओ, सो वि हु आलोयणिज्जो तो ॥६२॥ ईरियाए अणुयओगे, सावज्जोहारिणीए भासाए । अविसुद्धभत्तपाणाऽऽइ - गहणओ एसणाए वि | अप्पडिलेहपमज्जिय-भंडगउवगरणगहणनिक्खेये । उच्चाराईणमऽथं- डिले वि जह तह य परिट्ठवणे इय* पंचसु समिईसुं, गुत्तीसु य तीसु जो अईयारो । जाओ पमायओ को वि, सो वि आलोयणाअरिहो ॥ ६५ ॥ इय रागाऽऽइयसेणं, नट्ठवियेगेण असुहलेसेणं । जं कलुसियं चरितं तं सड़ आलोयणिज्जं तु एवं तयम्मि अणसण - माऽऽइपयारेहिं बज्झरूयम्मि अब्मिंतरम्मि वि तहा, पायच्छिताऽऽइभेएहिं सत्तीसम्भावम्मि वि, जमऽणायरणं कखं पमाएणं । सो होड़ अईयारो, आलोएयव्यओ नियमा विरिए वि हु अइयारं, सपरक्कमगोवणेण किच्चेसु । सिवगइनिबंधणेसुं, आलोएयव्ययं जाण | रागद्दोसकसाओ - वसग्गइंदियपरिसहट्टेण । जं दुट्टु यट्टियं तं पि, संममाऽऽलोइयव्यं ति मंदाऽवधारणतेण, जे य नो सुमरणापहे ठंति । असदस्स तस्स ओहेण, ते वि आलोइयव्या उ एवं विचित्तभेयं, आलोएयव्ययं तु निद्दिद्वं । जह सा दवावियव्या, गुरुणा तह संपयं वोच्छं पुव्युत्तो चैव गुरू, णवरं जो तत्थ होड़ आगमिओ । पडिवज्जिहि त्ति नाउं पम्हुट्टे सारणं कुणइ जो पुण नो पडिवज्जइ, सुठुवि जत्तेण सासिओ तं तु । नो सारेइ भयवं, जम्हा सो सारणवसेण गच्छं पि परिचएज्जा, गुणगणपरिमंडियं तु लज्जाए । अहवा होज्ज गिहत्थो, मिच्छंत वा वि गच्छेज्जा ॥ ७५ ॥ गुणदोसे मुणिऊणं, इच्छड़ आलोयणं पुणो पच्छा । चोएड़ देसकाले, सम्मं पडिवज्जिही जम्मि ॥७६॥ एगंतेण अजोगं, मुणिऊणं अहव नो पडिच्छेड़ । तह जह से न वि जायइ, सुहुमं पि अपत्तियं किंपि ॥७७॥ | इयरे य सुयाऽऽईया, आलोयार्येति ते पुण तिखुत्तो । सरिसऽत्थअपलिउंचिं, आगाराऽऽइंहिं नाऊण ॥७८॥ आगारेहिं सरेहिं, पुव्याऽयरवाहयाहिं य गिराहिं । पलिउंचिस्स सरूवं, कुसला पाएण जाणंति Fl ॥६७॥ ॥६८॥ ॥६९॥ ॥७०॥ ॥७१॥ ॥७२॥ ॥७३॥ ॥७४॥ ॥७९॥ जो सम्मं नाऽऽलोए, तस्सऽणुसद्धिं पुणो पजुंजंति । तह वि हु अठायमाणे, कारणओ नवरि पडिसेहो ॥८०॥ आह न छउमत्येणं, पडिच्छियव्वे वि वियडणा नेय । दायव्यं पच्छित्तं, नाणस्स अभावओ सम्मं ॥८१॥ परिणामहेउकम्मं, न य नज्जइ कस्स केरिसो सो य । निच्छयओ अन्नाए, तम्मि य कम्मं पि तेण समं ॥८२॥ भन्नड़ जह छउमत्थो वि, आगमे कयपरिस्समो वेज्जो । दिट्ठकिरिओ य रोगं, अवणेइ तहेव एसो वि ॥ ८३ ॥ इय जह दवावियव्या, गुरुणा आलोयण त्ति तह भणिया । पच्छितदारमेत्तो, समासओ संपयक्खामि ॥८४॥ दसविहपायच्छित्तं, आलोयणमाऽऽइयं मुणेयव्यं । जो तत्थ जेण सुज्झइ, अइयारो तं तदऽरिहं तु ॥८५॥ | आलोयणेण सुज्झइ, अइयारो को वि को वि पडिकमणे । मिस्सेंण को वि तां जाय, को वि पारंचिएणं ति॥८६॥ पच्छिताई चरेंतस्स, सुद्धचित्तस्स अप्पमायाओ । जायइ पावविसुद्धी, भुंज्जो तदऽकरणसत्तस्स | तम्हा बज्झऽब्भन्तर - करणसमग्गेण धम्मिएणेह । निच्चं चिय होयव्यं, न अन्नहागाहजुत्तेणं દા ॥८८॥ 143

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308