Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-1 प्रवेश : और रानी सुनंदा से ? समकित : रानी सुनंदा से बाहुबली नाम का पुत्र और सुंदरी नाम की पुत्री थी। प्रवेश : उनकी पुत्रियाँ भी थी ? समकित : हाँ, और वह उनसे बहुत स्नेह करते थे। तभी तो उन्होंने पुत्रों की तरह अपनी पुत्रियों को भी पढ़ाया-लिखाया। प्रवेश : उन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी व सुंदरी को क्या पढ़ाया ? समकित : उन्होंने ब्राह्मी को अक्षर-विद्या व सुंदरी को अंक-विद्या सिखाई। आज भी राजकुमारी ब्राह्मी के नाम पर ब्राह्मी-लिपि प्रचलित है। प्रवेश : यह तो हुई राजा ऋषभदेव की बात, वे भगवान ऋषभदेव कैसे बने ? समकित : एक बार की बात है राजा ऋषभदेव का जन्मदिन मनाया जा रहा था। राजसभा में नीलांजना नाम की देवी का नृत्य चल रहा था। अचानक नृत्य करते-करते नीलांजना की मृत्यु हो गयी / संसार की नश्वरता को देख ऋषभदेव को संसार से वैराग्य हो गया और सब कुछ त्याग कर उन्होंने वन-जंगल में जाकर मुनि-दीक्षा अंगीकार कर ली और छह महीने तक स्वयं की साधना में लीन रहे / उसके बाद छह महीने तक उन्हें आहार नहीं मिला। प्रवेश : मतलब पूरे एक साल तक उन्होंने कुछ नहीं खाया ? समकित : हाँ, एक साल बाद अक्षय-तृतीया(आखातीज) के दिन उन्हें हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने इक्षु-रस का आहार-दान दिया। उसी दिन से यह अक्षय-तृतीया पर्व चल पड़ा व राजा श्रेयांस को दानवीर कहा जाने लगा। प्रवेश : राजा ऋषभदेव, मुनि ऋषभदेव तो बन गये लेकिन भगवान ऋषभदेव वह कैसे बने ? 1.letters 2.numbers 3.brahmi-script 4.popular 5.dance-performance 6.mortality 7.detachment 8.adopt 9.sugarcane-juice 10.festival