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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 62 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भूतार्थ हैं अतः उभयदृष्टि से देखनां जब तक अभूतार्थ को अभूतार्थ और भूतार्थ नहीं समझोगे, भूतार्थ को भूतार्थ नहीं समझोगे तब तक अभूतार्थ को नहीं छोड़ेंगे और भूतार्थ को स्वीकार नहीं कर सकोगें 'समयसार' जी में आचार्य कुंदकुंद स्वामी लिख रहे हैं :
जह बंधे चिंतंतो बंधणबद्धो ण पावदि विमोक्खं तह बंधे चिंतंतो जीवोवि ण पावदि विमोक्खं 311
जह बंधे छित्तूणय बंधणबद्धो य पावदि विमोक्खं तह बंधे छित्तूणय जीवो संपावदि वमोक्खं 312
बन्ध को तोड़ने से बंध छूटेगा, बंधन से बंधा निबंधता का चिंतवन करे तो भी नहीं छूटेगां बंध से बंधा है और बंधरूप स्वीकार ले तो भी नहीं छूटेगां द्रव्यानुयोग कहता है: बंधन में पड़ा निबंधता को जान रहा है कि सुख निर्बधता में है, तो बंध को छोड़ने का पुरुषार्थ करता हैं निबंधता का ज्ञान जिसने करा दिया, वह द्रव्यानुयोग हैं जो बाँधकर रखे, वह करणानुयोग हैं जो छुड़वा रहे हैं वह चरणानुयोग हैं जो संकेत कर रहा कि, भइया संभल के चलना, वह प्रथमानुयोग हैं यदि निबंधता के सुख की बात करते हो तो बैल से पूछो-अहो वृषभ! तूने बंध को समझा है, तेरे सामने हरी घास है, दाने भी रखे हुए हैं, परंतु मौका देखता है कि मालिक गया कि खूटे को तोड़ने के लिये पुरुषार्थ प्रारंभ कर देता हैं हरी घास को नहीं निहार रहा हैं
भो चैतन्य आत्माओ! तुम्हारे पास ऐसी हरी घास राग की है, पर पता नहीं कौन से खूटे से बँधे हो? खूटा, रस्सी भी नहीं दिख रही है आपकी ध्यान रखना, यदि बंधन में सुख होता तो तिथंच खूटा तोड़ने का प्रयास कभी नहीं करतां सोने के पिंजरे में तोते को रत्नों की कटोरी में बादाम की खीर दिख रही है, पर देखो तो एक पक्षी तोड़ के चला गया, छोड़ के चला गया, परंतु आप ऐसे पक्षी हो कि फिर भी छोड़ कर नहीं जा रहें यह कमजोरी स्वयं की है और स्वयं ही दूर करेगां इसलिये तो आचार्य कुंदकुंददेव ने लिखा है-जिस प्रज्ञा से बंध किया है, उसी प्रज्ञा से बंध से छूटेगां परंतु आप शक्ति को छिपाए बैठे हुए हो, बुरा मत माननां आगम में स्पष्ट लिखा है कि अपने वीर्य को छिपाकर, अपनी शक्ति को छिपाकर, डाकू तो पर द्रव्य पर डाका डालता है,पर तुमने तो स्वयं के द्रव्य पर डाका डाला हैं कहता है कि शक्ति नहीं है और विषयों की दौड़ में तेरे पास शक्ति आ जाती हैं ऐसे ही माँ जिनवाणी के शब्दों से तेरे अंदर की शक्ति जाग्रत हो जाए तो तेरी शक्ति स्वभाव की ओर चली जाए, पर तुम शक्ति को छिपा रहे हो, जितनी शक्ति है उतना तो कर सकते हों
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