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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 251 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
काम चल रहा हो तो टंकी भर पानी का उपयोग मत करो, विवेक से काम करों तुम्हें आरती करना है तो उतना ही घी का उपयोग करो जो आरती पढ़ने के बाद ही जावें आपने घी भरकर रख दिया और पंखियाँ आकर गिर गई, अतः हिंसा हो रही हैं अर्हन्त भगवान हमारी पूजा से न तो प्रसन्न होते हैं और हमारी निंदा से नाराज भी नहीं होतें पूजा तो अपने चित्त को पवित्र करने के लिए है और दुष्ट कर्मों का शमन करने के लिए आराधना हैं मनीषियो! यह मत सोचना कि हम बहुत घृत भर देंगे तो भगवान् और खुश हो जायेंगें यह विवेक रखों बरसात चल रही है, जीव आ रहे हैं, खत्म हो रहे हैं ठीक है, निषेध न करो, पर विवेक तो रखों आराधना करो, भक्ति करो, पूजा करो, उसका निषेध नहीं, लेकिन विवेक और मर्यादा का पूर्ण ध्यान रखों
भो ज्ञानी! आजकल एक नई प्रथा शुरू हो गई है कि भगवान् के सामने बल्ब जलता हैं अहो ज्ञानियो! अहिंसा की बात करते हो तो विद्युत जहाँ से उत्पन्न होकर आ रही है उसमें कितने जीव मर रहे हैं? तुमने बल्ब जला दिया और रात भर जल रहा हैं तनिक विवेक तो रखो, सुबह आपने वेदी खोली तो उसमें कितने सारे कीड़े-पतंगे मिले आपको ? यही तो हिंसा हैं मार्ग को मार्ग रहने दो, उन्मार्ग मत बनाओं जैसा आगम में मार्ग है, वैसा रहने दों अगर इतिहास की खोज की जायेगी कि जैनदर्शन कब से है? तुमने प्राचीन ग्रंथ अलमारी में बंद करके रख दियें संस्कृत की पूजायें, प्राकृत की पूजायें आप लोग पढ़ते नहीं हों सब की हिन्दी कर डालीं वे संस्कृत की पूजाएँ, दस धर्म की पूजाएँ आप लोगों ने पुराने लोगों से सुनी होंगी जब वे दसधर्म की पूजाएँ संस्कृत में करते थे तो मंदिर गूंजता था, भले समझ में नहीं आये, लेकिन बड़ा अच्छा लगता था अब कोई हिंसक/अनाचारी है और उसके पास खूब धन भरा है, तो बहुत सारे धर्मात्मा ऐसी विभूति को देखकर विचलित हो जाते हैं आज जिनके घर में हिंसक काम चल रहे हैं, वे सम्मान पा रहे हैं
अहो! यह हिंसा का सम्मान नहीं है, यह हिंसा से धर्म नहीं आ रहा, बल्कि इनके पूर्व पुण्य का उदय चल रहा हैं इसलिए आप कहीं यह मत सोच बैठना कि हमारे अच्छे काम करने से पैसा नहीं आता तो हम भी बुरा काम करें इसलिए आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि ऐसे परम अहिंसा रसायन का पान करना अमृत का हेतुभूत हैं अतः अहिंसा-रसायन का पान करों भ्रम में मत पड़ जाना कि हिंसक/पापी बहुत सुखी देखे जा रहे हैं वे हिंसा से सुखी नहीं, वे पूर्व के पुण्य के योग से सुखी हैं हिंसा का फल उनको नियम से भोगना ही होगां कहावत है-"एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती"
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