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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 308 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
ओर घूम रहे हैं यदि गाँव के साहूकार सहयोग नहीं करें तो चोर में कोई ताकत नहीं कि चोरी कर सकें अहो आत्मा ! यदि काम, क्रोधादि तेरा सहयोग न करें, आत्मा मान का सहयोग न करे आत्मा मायाचारी का सहयोग न करे, तो कषायरूपी लुटेरों की कोई ताकत नहीं है कि वह हमारे धन को लूट सकें ध्यान रखना, पर्याय चोर नहीं है, यह पयायी का ही परिणमन हैं अतः पर्याय को दोष नहीं दो, इस पर्यायी को दोष दों पर्याय तो कहती है कि आप मेरा जैसा उपयोग करना चाहो वैसा कर लो, क्योंकि हम तो निश्चित समय तक बंधे हैं आयु बंध कह रहा है कि जिसने सौ वर्ष की आयु का बंध किया है, हम तब तक उसके साथ हैं इस बीच जितना उपयोग करना चाहे कर सकता हैं
भो ज्ञानी! प्रति समय पर दृष्टि रखोगे, तो एक समय पर दृष्टि रखी रहेगी और प्रति समय पर - दृष्टि नहीं रख पाए तो एक समय पर दृष्टि कभी भी नहीं जा सकतीं इसलिये प्रभुत्व सत्ता आपसे कह रही है कि मैं अखंण्ड हूँ मेरा शासन अखण्ड है, अविचल हैं
भो ज्ञानी! मेरी सत्ता बदलने वाली नहीं हैं सत्ता को वास्तविक रूप में समझना चाहते हो तो अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं- हे ज्ञानी! आप किसी के द्रव्य का हरण मत करों कर्त्तव्य का पालन नहीं करना ही चोरी हैं अहो! शासक की आज्ञा का पालन नहीं करना चोरी है, तो तीन लोक के शासक वर्द्धमान तीर्थंकर के शासन में हम विराजते हैं और उनके शासन की अवहेलना करना यह तो महाचोरी हैं रोज पूजा, दान, स्वाध्याय, उपासना, तप, त्याग आदि करना कर्त्तव्य हैं इनको प्रतिदिन ही नहीं, क्षण-क्षण करना हैं सामायिक के काल में आपकी दृष्टि अन्यत्र चली जाती है, तो आपने सामायिक के समय की चोरी की हैं आप प्रवचन सुन रहे थे परन्तु बगल में बैठे व्यक्ति से बातचीत करने लगे तो आपने स्वयं के साथ ही नहीं वरन् दूसरे के साथ भी धोखा कियां आपने उसकी दृष्टि चुरा लीं अतः ज्ञानावर्णीय कर्म का बंध भी किया और चोरी भी कीं वस्तु की कीमत सौ रुपए है और पचास में मिल रही है, इसका तात्पर्य ही है कि चोरी से ली गई है, तभी तो दे रहा हैं कभी किसी के धन या धरोहर को हड़प लिया है, तो वह भी डाका हैं यह ध्यान रखना, मिलेगा उतना ही जितना तुम्हारे भाग्य में हैं यह मन की संतुष्टि है, सो कर लो जितनी करना हैं चोखे में खोटा भर दिया, दिखाया अच्छा और दिया बुरा, सोचो हमने क्या किया ? केवल ऊपरी तत्त्व - ज्ञान को समझा और भीतर से खोखले हो चुके हों अरे! जब तक चरणानुयोग को नहीं समझोगे विशुद्धि बनना त्रैकालिक असंभव हैं डाका डालें और जाप करें और फिर कहें की विशुद्ध हो रहा हूँ केवली के ज्ञान में सब झलक रहा कि तुम क्या हो रहे हों डाकू भी चोरी करने को जाता है तो माला फेरकर जाता है, कि भगवन्, अच्छा मिल जायें अहो ! धन भी तभी मिलता है, जब तेरा पुण्य होता हैं इसलिये चोरी नहीं करना, चोरी की अनुमोदना नहीं करना, चोरी का द्रव्य भी नहीं खरीदनां रविवार के दिन शासन की अनुमति नहीं है दुकान खोलने की, फिर भी आधी दुकान खुली रहती हैं ध्यान रखना, आप जैसा कमाते हो, वैसा ही खाते हो, तो वैसे ही भाव बनते हैं
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