Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 567
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 567 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! अभी तक आप लोग तो मात्र एक ही बात को समझते रहे कि कोई शंका हो तो पुतला निकलता हैं इस संबंध में गोम्मट्सार (जीवकाण्ड) ग्रंथ में आचार्य नेमिचंद्रस्वामी ने लिखा है कि जिनेन्द्रदेव के जिनमंदिरों की वंदना के लिये और किसी प्रकार का प्रश्न उपस्थित होने अथवा संयम की रक्षा के लिए आहारक पुतला निकलता हैं यह विशेष बात समझना कि इस प्रकृति का बंध सातवें गुणस्थान में ही होता है, चौथे में नहीं होता और छठवें गुणस्थान में उदय आता हैं सप्तम-गुणस्थान जिज्ञासा का नहीं, ध्यान का हैं ध्यान में कोई नहीं होते हैं, प्रश्न ध्यान करने के लिए प्रश्न हो सकते हैं इसीलिए यह नय-विवक्षा है, कोई दोष नहीं हैं इस प्रकार से सम्यकदर्शन और चारित्र के होने पर तीर्थंकर व आहारक प्रकृति का बंध होता हैं आहारक शरीर सफेद वर्ण का होता है, स्फटिक के तुल्य, परंतु किसी का घात नहीं करता और किसी से बाधित भी नहीं होतां वह तो वज्रकपाट से भी निकल जाता हैं तीर्थकर-प्रकृति का बंध तो मात्र सम्यकदर्शन के सद्भाव में हो जाएगा, लेकिन आहारक प्रकृति का बंध सम्यक्त्व के होने मात्र से नहीं होगा, बल्कि चारित्र के साथ ही होगां तीर्थकर प्रकृति में विभूति, समवसरण आदि बाहरी वैभव है, लेकिन आहारक शरीर चारित्र की रक्षा के लिए और चारित्र के उदय से ही होता हैं आहारक शरीर का बंध नहीं होगा, छठवें गुणस्थान के अभाव में उदय भी नहीं होगा, लेकिन तीर्थंकर-प्रकृति का बंध करने वाला जीव चौथे गुणस्थान से लेकर आठवें गुणस्थान तक बंध कर सकता हैं URNA STDead श्री मांगी तुंगी सिद्ध क्षेत्र, महाराष्ट्र Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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