Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 573
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 573 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 अविरित, प्रमाद, कषाय और योग हैं रत्नत्रयधारी को बंध नहीं होता हैं भो ज्ञानी! जो पर्याय रत्नत्रय से मंडित आत्मा को स्वीकार कर चुकी है, वह पर्याय भी वंदनीय हो जाती हैं लेकिन वंदना की दृष्टि पर्याय की नहीं है, रत्नत्रय धर्म की हैं वंदे तद् गुण लब्धये जो रत्नत्रय धर्म था, उसकी वंदना थीं आज हम धर्म की हँसी क्यों करा देते हैं? क्योंकि हम वंदना में फूल जाते हैं, पर हम वंदना की वंदना का ध्यान नहीं रख पातें वंदना की वंदना का ध्यान रखा जाए तो कभी तुम अवंदनीय शब्द से नहीं कहे जा सकते हों एक ब्राह्मण विद्वान् के हाथ में पुस्तक दी गई, तो उसने पुस्तक सिर पर रखी एवं स्वयं धूल में बैठ गयें तभी एक छात्र ने अपने बस्ते को जमीन पर रखा और शर्ट - पेन्ट खराब न हो जाए इसलिए अपने बस्ते पर जाकर बैठ गयां क्षयोपशम से वह विद्वान् भी बन गया, लेकिन उनकी विद्वत्ता की कोई कीमत नहीं हैं जब उस प्रथम विद्वान से पूछा कि आपने इन पुस्तकों को सिर के ऊपर क्यों रखा और स्वयं धूल में बैठ गये, तो वे बोले- मैं तो जब जन्मा था तब धूल पर ही गिरा था, और जब मेरी मृत्यु होगी तो धूल पर ही छोड़ा जाएगां मेरी कीमत न तब थी. न अब है और न आगे होगी मेरी कीमत जिससे हुई है, उसे मैं सिर पर विराजमान किये हूँ मनीषियो! माँ जिनवाणी कह रही है कि मेरे पुत्रो ! यदि माँ की रक्षा आपने की है, तो सत्य की रक्षा हैं यदि माँ का अस्तित्व नहीं, तो तुम बेटे किसके ? आपकी कीमत शास्त्रों से हैं शास्त्रों की आप जितनी वंदना करोगे, श्रद्धावान् उतनी तुम्हारी वंदना करेंगें भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचन्द्रस्वामी कह रहे हैं कि जितनी विनय असंयमी आपका करते हैं, उससे कई गुना विनय संयमी को निज के संयम पर रखने की हैं निज के संयम का विनय आपने नहीं रखा, तो आपकी अविनय तो होगी ही, लेकिन आपके माध्यम से संयम की अविनय न हो जाए, यह भी ध्यान रखनां मनीषियो ! अनेक श्रमणों की समाधियाँ होती हैं, पर श्रमण- संस्कृति की कभी समाधि नहीं होतीं श्रमण संस्कृति की समाधि जिस दिन हो जाएगी, उस दिन धर्म नहीं बच सकतां इसीलिए ध्यान रखना, रत्नत्रयधर्म देव नहीं बनाता है, रत्नत्रय धर्म की साधना में देव बनते हैं पर कुछ-कुछ आंशिक शुभ - उपयोग संयम में अपराध हैं किसी ने आचार्य योगीन्दुस्वामी से पूछा-प्रभु! शुभ उपयोग के बारे में आपका क्या विचार है ? वे कहने लगे जो पाउ वि सो पाडु मुणि, सव्यु इ को वि मुणेई जो पुण्णु वि पाउ वि भणइ सो बुह को वि हवेइं71 यो. सा. Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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