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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 580 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 मार्ग नहीं हैं यदि आप साधना के मार्ग पर जाओ तो शरीर का ख्याल रखना, क्योंकि आगे उसी से साधना करना है, समितियों का पालन करना है और चर्या का पालन करना हैं जब तक आयु-कर्म क्षीण नहीं हुआ, तब तक सल्लेखना नहीं होगी आप करोगे क्या? अतः इसमें अनेकांत लगा लों साधना में जाओ और शरीर को गौण कर दों
भो मनीषियो! निश्चय और व्यवहार–पक्ष नमोस्तु शासन की नीति हैं जिसने निश्चय-पक्ष को छोड़ दिया, उसने शुद्ध उपयोग के लक्ष्य का घात कर दिया और जिसने व्यवहार को छोड़ दिया, उसने व्यवहार-तीर्थ का नाश कर दियां व्यवहार-तीर्थ निश्चय-तीर्थ की प्राप्ति का हेतु हैं व्यवहार तीर्थ नहीं होगा तो निश्चय-तीर्थ की प्राप्ति के लिए तुम बैठोगे कहाँ? इसलिए जिनवाणी कह रही है-जो निश्चय और व्यवहार में से एक का नाश कर रहा हो, वह उभय तीर्थ का घातक हैं निश्चय और व्यवहार दोनों को लेकर चले तो विश्व में कोई विवाद नहीं निश्चय और व्यवहारनय में कोई विसंवाद नहीं हैं यह व्यक्तियों के राग/अहंकार के विसंवाद हैं आचार्य भगवान् कुंदकुंद देव ने 'नियमसार' जी में लिखा है कि ईर्ष्या के भाव से पूर्ण होकर कोई वीतराग-शासन में दोष लगाने लग जाये तो, भो ज्ञानी! उसकी ईर्ष्या में दोष समझना, वीतराग-शासन पर अश्रद्धा करना शुरू मत कर देना, क्योंकि ईर्ष्यालुओं ने तीर्थकर महावीर स्वामी तक को नहीं छोड़ा
भो ज्ञानी! दो-सौ-पच्चीसवीं कारिका को पढ़ लों जो मात्र निश्चयवाला है, तो वह मिथ्यादृष्टि और व्यवहार मात्र है वह भी मिथ्यादृष्टि हैं आगम में पाँच प्रकार के मिथ्यात्व में एक 'अज्ञान' नाम का भी मिथ्यात्व हैं इसलिए आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि निश्चय और व्यवहार से युक्त अवस्था ही सम्यक्त्व हैं देखो, जब गोपी मक्खन निकालती है तो वह रस्सी के एक छोर को खींचती है और दूसरे छोर को शिथिल कर देती हैं तभी मक्खन निकलता हैं भो ज्ञानी! यही वस्तु तत्त्व के कथन करने की शैली हैं ऐसे ही निश्चय नय का कथन हो, तो व्यवहार को शिथिल कर दिया जाता है और जब व्यवहार का कथन होता है, तो निश्चय को शिथिल कर दिया जाता है; लेकिन अभाव दोनों का नहीं होता हैं जिसने एक का भी अभाव कर दिया तो वीतराग शुद्धात्म स्वरूप के मक्खन को नहीं निकाल पायेगां अहो भगवन्! ऐसा निर्द्वन्द अकृतत्व-भाव प्राणीमात्र के अंदर आ जाये, तो संसार में विवाद ही न हों संविधान तोड़ा, तो विघ्न होना ही हैं नमोस्तु-शासन में भी दो संविधान हैंएक श्रावकों के लिए श्रावकाचार संविधान बनाया गया है, दूसरा मुनियों के मूलाचार का संविधान लिखा हैं बस, जितना लिखा, उसको लिख लेना, तो कार्य बन गयां कर्तृत्व-भाव यानी सब करने की भावना करने की भावना ही उसे विकल्प करा रही हैं
भो ज्ञानी! नाना प्रकार के अक्षरों द्वारा पद बने हैं, पदों के द्वारा वाक्य बने हुए हैं, वाक्यों के द्वारा यह पवित्र शास्त्र बना है, मेरे द्वारा कुछ भी नहीं किया गया हैं इतना बड़ा महान ग्रंथ लिखने के बाद भी आचार्य
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