Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 527
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 527 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 तपस्वी का वेष धारण कर लिया, पर कामनाएँ ज्यों-की-त्यों मौजूद रहीं, तो कोरा तपस्वी-वेष तप का प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकता, मात्र जगसमुदाय को पागल बनाना है और स्व आत्म-वंदना करना हैं मन और इंद्रियों का दमन करना तपस्वी के लिए अनिवार्य है और इनका दमन या निग्रह तप के अभाव से संभव नहीं क्योंकि मन व इंद्रियों को निग्रह करनेवाला साधन यदि कोई है तो वह है तपं तप से च्युत होने का कारण यदि कोई है तो वह है तपस्वियों की तपस्या में कमी तपस्वी यदि आगमविहित विधि से तपश्चरण करता है तो वह कभी भी अपने पद से हट नहीं सकतां पर कारण यह बनता है कि य तो स्वशक्ति से ज्यादा तपस्या कर लेता है या फिर शक्ति को छिपाता हैं ये दोनों ही स्व-पद से च्युत करा सकते हैं यथाशक्ति तपश्चरण करना चाहिए, जैसे वर्तमान (कलिकाल) में साधकों के लिए जंगल-वास का निषेध आगम में हैं क्योंकि वर्तमान में चतुर्थकाल-जैसी शारीरिक शक्ति नहीं है, फिर भी कोई साधक जंगलवास करता है तो वह अपनी शक्ति से अधिक अलग क्रिया कर रहा हैं हो सकता है कि जीवन से भी हाथ धोना पड़ें इसीलिए आगम में उल्लेख किया गया है 'जं सकइ तं कीरइ, जं च सकई तहेव सददहणं सद्दहमाणे जीवो, पावई अजमरामरं ठाणं" अर्थात् जितनी शक्ति हो उतना तप करो, यदि शक्ति नहीं है तो आप श्रद्धान करों श्रद्धान करनेवाला मानव भी जन्म-मरण का नाश करके क्रमशः निर्वाण को प्राप्त कर सकता हैं जिस प्रकार अग्नि की अनुपस्थिति में भोजन आदि का पकना कठिन है, उसी प्रकार तपाग्नि में तपे बिना कर्मक्षय असंभव है एवं सच्चे सुख की प्राप्ति कदापि संभव नहीं हैं चिंतवन करें, आप स्वयं सोचें-तप के बिना आज तक किसी को मोक्ष हुआ है क्या? या आत्म वैभव प्राप्त हुआ है? नहीं तप ही आत्मिक सम्पदा का मूल मंत्र-तंत्र हैं किंतु तप सम्यक होना चाहिएं मृत्तिका जब आर्द्र होती है, तब तक ही पैरों से रोंदी जाती हैं जब वह सखकर घडा बन जाती है एवं अग्नि में तप जाती है तो वही मांगलिक कार्यों में मंगल कलश बनकर सौभाग्यशाली माताओं के सिर पर विराजमान हो जाती हैं दुग्ध को जबतक तपाकर या जमाकर दही बनाकर नहीं मथोगे, तब तक घृत की प्राप्ति कैसे होगी? और जब मथकर मक्खन को तपाते हैं तो शुद्ध घी बन जाता हैं अतः घृत से पुनः दुग्ध नहीं हो सकतां घृत को कितने ही गहरे पानी में डाल दो, पर वह स्वतः उपर आ जाता हैं किसी को लाने की आवश्यकता नही पड़तीं इसी प्रकार जो सम्यक् तप करता है, उस तपस्वी की आत्मा स्वतः ऊर्ध्वगामी हो परमात्मा बन जाती हैं जैसे घृत पुनः दुग्ध नही होता, वैसे ही वह आत्मा पुनः संसार के दुःखों को प्राप्त करने Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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