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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 544 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
आत्मा का सुख निराकुल है और संसार में आकुलता हैं निराकुलता जहाँ है, वहाँ आकुलता नहीं हैं इसीलिए शिवमार्ग पर लग जाना चाहिएं
भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि संसार में तुम्हें जितनी शांति महसूस हो, जितना सुख महसूस हो, उसे शांति से स्वीकार करों परंतु यह ध्यान रखना कि शत्रु के घर में प्रवेश करके सन्मान की कल्पना का मन मत बना लेना, क्योंकि संसार का प्रत्येक क्षण, प्रत्येक परिणति, प्रत्येक अवस्था अशांति हैं इस कारिका में आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी गृहस्थ-धर्म का कथन करने के उपरांत यति-धर्म का कथन इसलिए कर रहे हैं कि इसमें निराकुलता की हल्की-सी तस्वीर दिख रही हैं एक साधक को सामायिक के काल में जो समता परिणाम आते हैं, उससे लगता है कि अनन्त सुख नाम की भी कोई वस्तु हैं पुरुषार्थहीन व्यक्ति ही सबसे बड़ा अशांत है, जबकि उद्यमशील पुरुष परम-शांति की खोज में हैं अतः, उद्यम का मार्ग ही मार्ग हैं धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष यह चार पुरुषार्थ हैं पुरु यानि श्रेष्ठं जो श्रेष्ठता से युक्त है, उसका नाम पुरुषार्थ हैं अतः, पुरुष के अर्थ की सिद्धि होगी तो पुरुषार्थ से ही होगी और जो भी तुम्हारा भाग्य बन कर आ रहा है, वह भी पुरुषार्थ हैं वर्तमान का पुरुषार्थ ही भविष्य के भाग्य के उदय में आता हैं जिसे आप कर्मउदय कहते हो, वह भी कर्म से आता हैं
भो ज्ञानी! जीव जिसे कर्मउदय कहकर उसके उदय में बिलखता है. लेकिन वास्तव में कर्मउदय कोई वस्तु नहीं हैं क्योंकि कर्म न किया होता, तो कर्म बंध न होता और कर्म बंध न होता, तो कर्म उदय में न आतां इसीलिए रोने और बिलखने का तो कोई प्रश्न ही नहीं हैं श्रमण संस्कृति बड़ा सहज दर्शन हैं अतः, उद्यम करों उद्यम किया तो आप लोग यहाँ आ गये और नरक भी जाओगे तो उद्यम करके ही जाओगें स्वर्ग भी जाओगे तो उद्यम करके जाओगे और सिद्ध बनोगे तो उद्यम करके बनोगें अहो! ऊधम करने से कुछ नहीं बनोगें व्यर्थ के ऊधम छोड़ दो कि काललब्धि आ जाएगी तो मोक्ष प्राप्त हो जाएगां उद्यम करोगे तो काललब्धि निश्चित आएगी काललब्धि कभी यह नहीं कहती कि काम मुझ पर छोड़ दों काललब्धि यह कह रही है कि
प उद्यम करो, मैं आपको समय पर फल दे देंगी पर काललब्धि का उल्टा अर्थ लगा दियां काललब्धि पुरुषार्थ नहीं बना रही हैं उद्यम तो आपको करना ही पड़ेगां ।
भो ज्ञानी! भगवान् कह रहे हैं कि यदि मुक्ति की अभिलाषा है तो एक बात ध्यान रखना, 'समयसार' में लिखा है कि निर्बध हो जाओं पर माला फेरने से निर्बध होनेवाले नहीं हों “मुक्ति मिल जाए, मुक्ति मिल जाए" ऐसे जप करने से मुक्ति तीन काल में मिलने वाली नहीं हैं 'मैं बंधा हूँ-मैं बंधा हूँ' ऐसा कहने से भी निर्बध नहीं उसके अभिलाषा मात्र करने से निर्बध नहीं हो सकतें प्रातः सुनते हो वह मध्यान्ह में विपरीत करते हैं और मध्यान्ह में जो सुना, संध्या को विपरीत कियां यदि मार्ग विपरीत हो, चर्चा समीचीन हो तो आत्म चर्चा से कभी निर्बधता नहीं होती हैं निर्बधता की प्राप्ति तो बंधनों को छोड़ने से होती हैं अर्थात् भावों में कितनी
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