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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 546 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
मार कर भगा देते हों अहो पिताओ! ऐसा राग मत रखना कि तुम्हारे बेटों को तुम्हारे सामने घास और सानी रखना पड़ें यह राग की महिमा हैं
भो ज्ञानी! क्यों ऐसा हुआ? क्योंकि हमारा उद्यम/पुरुषार्थ अप्रशस्त हो गयां वह रत्नत्रय की ओर जाना चाहिए था, लेकिन वह मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय रूप हो गयां अतः अब काल लब्धि पर नहीं बैठना, कार्य लब्धि पर बैठनां 'क्षपणा सार, लब्धिसार' ग्रंथ कहता है कि अहो ज्ञानी! अब तुम यह मत कहो कि काल लब्धि आएगी, तुम ऐसा कहो कि कर्मों का क्षय करने का प्रयत्न मैं करूँगां और उद्यम भी तीर्थकर केवली नहीं कराएँगें निज का उद्यम निज को ही रत्नत्रय पूर्वक करना है और अब समवसरण में नहीं जाना, अब तो समवसरण में आना हैं आप समवसरण में कई बार गये हों विदिशा में तो शीतलनाथ भगवान का समवसरण तो नियम से लगा हुआ हैं कल्पना करो, इस भूमि की महिमा तो है कि जिस भूमि पर बार-बार समवसरण लग रहे हों सब कुछ कर लेना, पर रत्नत्रय धर्म को मत छोड़नां
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आचार्य श्री १०८ विरागसागर जी महाराज
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