Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 550
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 550 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 सिद्धांत कह रहा है कि समझ लो आपकी दशा कोई दूसरी हो चुकी है, क्योंकि नरक, तिर्यंच और मनुष्य आयु का बंधक देशव्रती भी नहीं बन सकतां चतारिविं खेत्ताई आउगबंधेण होदि सम्मत्तं अणुवदमहव्वदाई ण लहइ देवाउगं मोत्तुं 653 गो. (जी.का.) भो ज्ञानी! सम्यकदृष्टि जीव कह रहा है कि आराधना कर्मबंध का हेतु तो है, लेकिन वह शुभ-कर्मबंध का हेतु है, अशुभ-कर्मबंध का हेतु नहीं हैं पर यह बंध, बंध नहीं है, नियम से निबंध का हेतु हैं जो कहते हैं कि शुभ मत करो, पूजा पाठ छोड़ दो, यह शुभ की क्रिया है, अहो ज्ञानियो! पहले अशुभ की क्रिया तो छोड़ों वह शुभ क्रियाएँ तो परंपरा से मोक्ष का हेतु हैं, पर अशुभ क्रियाएँ नियम से संसार का ही हेतु हैं यह कारिका कह रही है कि एकदेश रत्नत्रय भी मोक्ष का ही उपाय हैं अहो ज्ञानियो! तुम संसार में अशुभ में पड़े-पड़े रो लोगे तो कम से कम शुभ में लग जाओं यह शुभ क्रिया चल रही हैं आश्चर्य तो यह होता है कि करते तो तुम शुभ हो, पर तुम उसे कहते अशुभ हो, यानि कि शुभ करके भी तुम अशुभ कर्म-बंध कर रहे हों आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी लिख रहे हैं-उन जीवों पर और करुणा कर लेना जो शुभ करते-करते पाप में लिप्त हो रहे हैं अहो! रत्नत्रय की साधना, धर्म की आराधना, मुमुक्षु जीव मोक्ष के लिए ही करता है, संसार के लिये नहीं अशुभ-क्रिया नरक का हेतु है, पर सम्यकदृष्टि जीव की शुभ क्रिया परंपरा से मोक्ष का ही हेतु हैं इस प्रकार से समझनां यूरोप, केलिफोर्निया स्थित श्री जैन मंदिर Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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