Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 558
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 558 of 583 ___ ISBN # 81-7628-131- 3 v-2010:002 'परमात्मस्वरूप रत्नत्रय' दर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः स्थितिरात्मनि चारित्रं कुत एतेभ्यो भवति बन्ध:216 अन्वयार्थः आत्मविनिश्चतिः = अपने आत्मा का विनिश्चयं दर्शनम् = सम्यग्दर्शनं आत्मपरिज्ञानम् = आत्मा का विशेष ज्ञानं बोधः = सम्यग्ज्ञानं और आत्मनि स्थितिः = आत्मा में स्थिरतां चारित्रं = सम्यक्चारित्रं इष्यते = कहा गया है, तो फिर एतेभ्यः = इन तीनों से कुतः बन्धः भवति = कैसे बंध होता है ? मनीषियो! अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने बड़ा ही सरल सूत्र दिया है कि बंध से भयभीत होने के साथ-साथ बंध के हेतुओं से भयभीत हो जाओं सम्यक्त्व बंध नहीं, ज्ञान बंध नहीं, चारित्र बंध नहीं अज्ञान ही बंध है, असंयम ही बंध है, अश्रद्धान ही बंध हैं आगम में प्रकृतिबंध, प्रदेशबंध, स्थितिबंध और अनुभागबंध की चर्चा हैं जिस कर्म का जो स्वभाव है, वह अपने अनुरूप उदय में आता है, बिना स्वभाव के उदय में नहीं आतां कुछ ऐसे भी कर्म हैं जिनकी मूलप्रकृ तियाँ अपने स्वरूप को नहीं बदलती, उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण हो जाता हैं एक क्षण के परिणाम मिथ्यात्व रूप थे, पर सम्यक-निमित्त को देखा तो वह मिथ्यात्व सम्यक रूप परिवर्तित हो गयां साता असाता रूप संक्रमित हो जाती है और असाता साता रूप संक्रमित हो जाती हैं जो कर्म अशुभ फल दे रहा था, वही कर्म शुभ फल देना प्रारंभ कर देता हैं इसको आश्चर्य मत माननां शाम को खिलाई गयी घास सुबह दुग्ध में वृद्धि कर देती हैं ऐसे ही एक अंतर्मुहूर्त के परिणाम द्वितीय अंतर्मुहूर्त में आपको पुण्य के रूप में फलित हो जाते हैं और एक मुहूर्त पूर्व किया गया अशुभ-कर्म द्वितीय मुहूर्त में पाप के रूप में भी फलित होते देखा जाता हैं भो ज्ञानी! नवयुवती के दर्पण देखते समय योगी की छाया दर्पण पर पड़ गई, विकार आ गए कि, अहो! यह नग्न भेष कहाँ से दिख गया? मेरे श्रृंगार में दूषण आ गयां मुनिराज जंगल नहीं पहुँच पाए, परंतु उस युवती के शरीर में कुष्ठ हो गयां यह परिणामों की परिणति थीं चित्र को देखकर चित्र भी नहीं दिखा, रूप को देखकर रूप को नहीं देख पायें रूप को देखकर स्वरूप को भूल गये तो एक अंतर्मुहूर्त में ही सारा शरीर गलित-कुष्ठ से युक्त हो गयां अहो! देखना लक्ष्मीमति को, देखना श्रीपाल कों यह परिणामों की दशा है Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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